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________________ सस्कृत साहित्य का इतिहास मृच्छकटिक का काम अनिश्चित है। बैंकोट ने गुणाख्य को सातवाहन का समकालमद होने के कारण ईसा की प्रथम शताब्दी में रखा है। इस विरुद्ध मत्व वालों का कथन है कि सातवाहन केवल वंश-वाचक नाम है, अत: इससे कोई अमन्दिग्ध परिणाम नहीं निकाला जा सकता है। कायन्त्र ब्याकरख के कर्ता शर्वशर्मा के साथ नाम्न गाने के कारण गुणात्य ईसा की प्रथम शताब्दी के बाद का मालूम होता है। (छ) ग्रन्थ का महत्त्व-(8)--वृहत्कथाह महान् महत्व का अन्य है । लोकप्रिय कहानियों का प्राचीनतम ग्रन्थ होने के अतिरिक्त यह भारतीय साहित्य-कला को सामग्री देने वाला विशाल भण्डार है ! (२) अपने से अध्यकाल के संस्कृत-साहित्य पर प्रभाव डालने बाले अन्थों में इसका स्थान पामायण और महाभारत केवल इन दा अन्थों के बाद हैं ! ऊर्ध्वकालीन लेखकों के लिए प्रतिपाद्य अर्थ तथा प्रकार दोनों की दृष्टि से यह अक्षर निधि सिद्ध हुश्रा है। (३) बृहस्कथा की कहानियाँ एक ऐसे काल की ओर सकेत करती हैं, जो हमें भारत के इतिहास में ऐतिहासिक दृष्टि से अविस्पष्ट प्रतीत होता है। इन कहानियों को जाँच-पड़ताल करने वाले की दृष्टि से देखा जाए, तो इनसे तत्कालीन भारतीय विचारों और रीति-रिवाजों पर प र प्रकाश पडता प्रतीत होगा। (४) बृहत्कथा भारतीय साहित्य के विकास में एक महत्वपूर्ण अवस्था की सीमा का निर्धारण करती है। (८३) बुद्ध स्वामी का श्लोक संग्रह (८ वीं या ६ वी श०) बुद्धस्वामी के ग्रन्थ का पूरा नाम वृहत्कथा श्लोकसंग्रह है। अत. जाना जाता है कि इस अन्य का उद्देश्य पद्यरूप में बृहत्कथा का संक्षेप दना है । यह अन्ध केवल खपितरूप ने उपलब्ध होता है, और पता ही लेखक ने इसे पूरा लिखा था या अधूरा ही छोड दिया था । इस अन्य की हस्तलिखित प्रतियाँ नेपाल से मिली है। अत: इसका नाम नेपाली संस्करण रक्खा गया है। किन्तु इस ग्रन्थ या ग्रन्थकार का
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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