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________________ गद्य-काव्य और चम्पू (८१) चम्पू चम्पू गद्य-पद्यमय काव्य को कहते हैं । इसकी वर्णनीय वस्तु कोई कथा होती है । 'कथा' के समान ही चम्पू भी साहित्यदर्पण में रचना का एक प्रकार स्वीकृत हुआ है और ईसा की १०वीं शताब्दी तक के पुराने चम्पू ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं । आजकस जिसने चम्पू-लेखकों का पता चलता है उनमें सबसे पुराना त्रिविक्रम भट्ट है । यही ६६३ ई० के राष्ट्रकूट नृप इन्द्र तृतीय के नौसारी वाले शिक्षालेख का भी लेखक है । इसके दो ग्रन्थ मिलते हैं --- नलचम्पू (जिसे दमयन्ती कथा भी कहते हैं) और मदालसचम्पू । इनमें से नवम् अपूर्ण है। दोनो ग्रन्थों में गौडी रीति का अनुसरण किया गया है । यहो कारण है कि इनमें दीर्घ समास, अनेक श्लेष, अनन्त विशेषण, दुरूह वाक्य रचना और अत्यधिक अनुप्रास हैं श्रुति सुखदता के लिए अर्थ की बलि दे दी गई है । हां, कुछ पछ रमणीय बनपड़े हैं । इस के नाम से सूक्तिसंग्रहों में संग्रहीत किया हुआ एक पथ देखिए- जननीरागहेतवः । सन्ध्येके बहुलायो बालका इव ' ॥ २१३ अप्रगल्भपदन्यासा arat शताब्दी में लिखा हुआ दूसरा कथा- काव्यग्रन्थ यशस्तिलक | इसे सोमदेव जैन ने १५० ई० में लिखा था । साहित्यिक गुणों की केन्द्रिक अभिप्राय देते हैं (जैसे; पञ्चतन्त्र ) या बात को प्रभाव - शालिनी बनाते हैं या किसी बात पर बल देते हैं । चम्पू में पद्य गद्यवत् ही किसी घटना का वर्णन करते हैं । १ प्रौढ चाल वाले, माता को श्रानन्द देने वाले, और [मुख से चूत हुई ] बहुत से पीने वाले बालकों के समान कुछ ऐसे भी कवि हैं जिनक वाक्य रचना प्रौढ नहीं है जो जनता को आकृष्ट नहीं कर सकते और जो बोलते अधिक हैं।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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