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________________ गद्य-काव्य और चम्पू २१. के बाडम्बरपूर्ण जीवन का निपुण वर्णन तुलना की रीति पर बड़े है उत्तम डङ्ग से किया गया है। लचमुच बार की वर्णन-शक्ति बहुत मारी है, इसीलिये उसके विषय में कहा गया है कि "बाणोपिछष्ठं जगत् सर्थम्" हाण ने सारे जगत को जूठा कर दिया है। कादम्बरी के अध्ययन से यह भी मालूम होता है कि बाण का भाषा पर बड़ा विद्वत्तापूर्ण अधिकार था जिसके कारण उसने अप्रसिद्ध और ऋठिन शब्दों का भी प्रयोग कर डाला है। श्लेष के संयोग से तो उसका मध किसी योग्य टीका के बिना समझना ही कनिन हो गया है। आधुनिक बाटों से तोलने वाले प.श्चात्य पालोचकों ने इन त्रुटियों की बड़ी कटु आलोचना की है। जैसा पइले कहा जा चुका है उनके गा को एक भारतीय जंगल कहा गया है जिसमें झाड़-मंकादों के उग आने के कारण पथिक, जब तक मार्ग न बना ले. अागे नहीं बढ़ सकता, और जिसमें उसे अप्रसिद्ध शब्दों के रूप में भयावह जंगली जानवों का सामना करना पड़ता अन्य में समानुपातिक अंगोपचय का ध्यान नहीं रखा गया है। कदाचित् लेस्नक के पास किसी प्रसंग के वर्णन की जब तक कुछ भी सामग्री शेष रही है तब तक उसने इस प्रसङ्ग का पिंड नहीं छोड़ा है। दाहरणार्थ, एक सीधी सादी बात थी कि एक उज्जैन नगर था। अब इसकी विशेषणमाला जो प्रारम्भ हुई है दो पृष्ठ तक चली गई है। कभी कभी समास-गुम्फित विशेषण एक सारी की सारी पंक्ति तक बन्बा हो गया है। चन्द्रापीड़ को दिया हुआ शुकनास का उगदेश सात पृष्ठ में पाया है। जब तक प्रत्येक सम्भव रीति से बात तरुण राजकुमार के मन में पिठा नहीं दी गई, तम तक उपदेश समाप्त नहीं किया गया। किन्तु वाश की शैली का वास्तविक स्वरूप यह है कि १ कादम्बरी के अपने संस्करण की भूमिका में डा० पीटरसन द्वारा उद्धृत बैबर की सम्पति।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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