SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सस्कृत साहित्य का इतिहास प्रो. विल्सन ने परिणाम निकाला है कि दरडी महाराज भोज के किसी ঋল ভলামিকাৰ ক স্বাক্ষ্য ম লাবিন বা ব্যা? কী वास्पर्य यह है कि दण्डी ईला को १३ वी शताब्दी में हुआ, परन्तु कुछ अन्य विचार इसे इससे बहुत ही पहले का लिह करते हैं। आ० पीटरसन ने जिन आधारों पर इसे ईसा की शताब्दी में रक्खा है, वे ये हैं:-१) काव्यादर्श २, २५८.६ में पालद्वारिक वामन (८ वी श० ) की ओर संकेत प्रतीत होता है, और (२) कान्यादर्श १, १३७ वाला पद्य' कादम्बरी के उसी बयान में बहुत समानता खवर । ভাৰাছা ফিঙ্গু ল মনাহি ক লাঃ की तथा भवभूति के माजीमाधव नाटक के पश्चम अङ्क की कथा में অন লস্তাই হ্রদ্ধা ও অন্যান্স বিল্পি আজি দুখী सम्भवतया भवभूति का समकालीन था। हाण ने अपने हर्षचरित की भूमिका में दण्डी का नाम नहीं लिया, परन्तु इससे भी कुछ परिणाम नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि उसने तो भारवि जैले महाकवियों तक का भी नामोल्लेख नही किना है। शैली का साक्ष्य बतलाता है कि दशकुमारचरित सुबन्धु और बाण के गद्य-काव्यों की अपेक्षा पञ्चतन्त्र या कथासरित्सागर से अधिक मिलता जुलता है । यद्यपि अपने काव्यादर्श में दण्डी कहता है कि "प्रोज; समासभूषल्वमेतद् गधस्य जीवितम्। ( समासबाहुल्य से परिपूर्ण भोज गुण हो गद्य का प्राण है), तथापि इसका अपना दशकुमारचरित वासवदत्ता या कादम्बरी के सामने बिल्कुल सरह है। १ दण्डी अरलालोक सेहाथैमवार्थ सूर्यरश्मिभिः । दृष्ठिरोधकरं यूनां यौवनप्रभवं तमः । बाय---- केवलं च निसर्गत एवाभानुभेद्यमरनालोकोच्छेद्यम प्रदीपसमापनेयमतिगहन वमो चौवनप्रभवम् ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy