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सस्कृत-साहित्य का इतिहास (१) संस्कृत-साहित्य का अध्ययन ऐतिहासिकों के बड़े काम का है। यह विस्तृत भारतवर्ष के निवासियों के बुद्धि-जगत् के तीन हजार से भी अधिक वर्षों का इतिहास ही नहीं है प्रत्युत उत्तर में तिब्बत, चीन, जापान, कोरिया, दक्षिण में लंका, पूर्व में मनाया प्रायद्वीप, सुमात्रा, जावा, बाली, बोनियो तथा प्रशांत महालागर के दूसरे द्वीप; और पश्चिम में अफगानिस्तान, तुर्किस्तान इत्यादि देशों के बौद्धिक जगत् पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव भी पड़ा है।
(२) आधुनिक शताब्दियों में इसने यूरोप पर युगप्रवर्तक प्रभाव डाला है।"
(३) संस्कृत भारोपाय शाखा की सब से पुरानी भाषा है । अतएव इसके साहित्य में इस शाखा के सबसे पुराने साहित्यिक स्मारक उपलब्ध होते है। धार्मिक विचारों के क्रमिक विकास का जैसा विस्पष्ट चित्र यह साहित्य उपस्थित करता है, वैसा जगत् का कोई दूसरा साहित्यिक स्मारक नहीं।
(४) 'साहित्य' शब्द के व्यापक से व्यापक अर्थ में---महाकाव्य, काव्य, गीति-काव्य, नाटक, गद्य-श्राख्यायिका, नौपदेशिक कथा, लोकप्रिय कथा, विज्ञान-प्रन्थ इत्यादि जो कुछ भी श्री सकता है, वह सब कुछ संस्कृत-साहित्य में मौजूद है । हमें भारत में राजनीति, अायुर्वेद, फलित ज्योतिष, गणित-ज्योतिष, अङ्कगणित और ज्यामिति का ही बहुतसा और कुछ पुराना साहित्य मिलता हो यह बात नहीं है, बल्कि भारत मे संगीत, नृत्य, नाटक, जाडू, देव-विद्या, यहाँ तक कि अलंकार-विद्या
१.अधिक आनने के लिए आगामी द्वितीय खण्ड देखिए । २.संस्कृत से मिलती-जुलती भाषामो का एक वर्ग बनाया गया है, जिसे भारोपीय शाखा का नाम दिया गया है क्योकि इसमें द्राविड भाषाश्रो को छोड़ कर भारतीय--पार्यों की सारी भाषाएं और यूरोप की सारी भाषाएं श्रा गई हैं । ३. मैकडानल कृत संस्कत-साहित्य का इतिहास ( इंग्लिश )
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