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________________ २७० संस्कृत साहित्य का इतिहास व काव्यों की श्रेणी में है। बोक-निषता में इस से बढ़ कर किसी শ্রীহ ছল্পীঃ ক্লা জা ব্যাল্প ক্লিকাজ ঝ?? হানী a इसके रचयिता की प्रतिष्ठार्थ इसकी जन्म-वडली में प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले उत्सव में रात्रि को गीतगोविन्द के गीत गाए जाते रहे है। इसका अपने आपको कविराज शहना धिरकुल यथार्थ है । सर विलियम जोन्स (Sir william Jones) द्वारा तैयार किए हुए इसके एक विकृत संस्करण को ही देख कर गेटे (Goeth:) ने इसकी बड़ाई करते हुए कहा था--"यदि उस्कृष्ट काब्य का यहा लक्षण है कि उनका अनुवाद करना अस्वम्भव है तो जयदेव का काब्य वस्तुतः ऐसा ही है" १ । बाह्याकृतिगीत गोविन्द की बाह्याकृति के बारे में अनेक मत्त हैं। भिन्न-भिन्न कला-कोविदों ने इसके भिन्न भिन्न नाम रक्खे हैं; जैसे---- सङ्गीत काव्यात्मक रूपक (Lyric drama) (बासेन Lassen), मधुररूपक (Melodrama) (पिश Pischel), परिष्कृत यात्रा (Refined Yatra वॉन बॉडर (Von schrodder), पशुचारकीय रूपक (Pastoral drama)(जोन्स Jones), गीत और रूपक का मध्यवर्ती काव्य (Between Song and drama) (लेवि LEVI)। परन्तु यह अन्य मुख्यतया कान्य श्रेणी ने सम्बन्ध रखता है। यह बात ध्यान रखने की है कि प्रत्यकर्ता ने स्वर्ग इसे सों में विभक किया है अंकों में नहा । गौर उत्सवों में मन्दिरों में गाने के उद्देश्य से रचे गए हैं, इसीलिए उनके ऊपर रा और तान का नाम दिया गया है। सच तो यह है कि साहित्य में यह अन्य अपने ढंग का श्राप हो है और कवि की यथार्थ उपज्ञा है। उच्चारणीय पाठ और गील, कथा, वर्णन और भाषण सब के सब बड़े विचार के साथ परस्पर गूथे गए है। व षय- इस सारे मन्ध में १२ लग है जो १४ प्रबन्धों १ प्रो० ए. बी. कीथ (Keith) कृत 'ए हिल्टराव सस्कृत लिटरेचर' (१९२८) पृष्ठ १३५ ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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