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________________ * संस्कृत साहित्य का इतिहास aitree' के अन्त में वैसे ही इसमें भी प्राय श्रङ्गाररस की हरीति से की गई है । यह संस्कृत में है पर मूल्यको से हाल की सतसई से घट कर है । एक और अनुकून wr feat fast की सतसई है। इसमें लगभग सात सौदा हैं जिनमें रस है । इसमें नायक के सम्बन्ध से विविध परिस्थितियों में विभिन्न मनोवेगों से उत्पन्न होने बाकी नायिका के नाना रूपों के चित्र प्रति किये गए हैं । (५६) भट हरि - सङ्गीत-काव्य के इतिहास में तृहरि का स्थान कालिदास से दूसरे नम्बर पर है । उसके तीन ही शतक प्रfter हैं--शृङ्गार शतक, नीविशतक और वैराग्यशतक | पहले शतक में प्रेम का दूसरे में नीति ( Moral policy ) का और तीसरे में वैराग्य का वर्णन है । इनमें से प्रत्येक में सौ से कुछ अधिक हो पय पाए जाते हैं, परन्तु यह कहना कठिन है कि वे सब भर्तृहरि की ही रचना हैं। इनमें से कुछ शकुन्तला, मुद्रा और चन्द्रादयाचिका में भी आए हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो सूक्ति सन्दर्भों में किसी अन्य refrता के नाम से संग्रहीत हैं । चाहे उसके नीति और वैराग्यशतक में किलो अन्य रविता के भो तो संगृद्दीत दो; परन्तु श्रङ्गारशतक उसी के मस्तिष्क की उपज्ञा प्रतीत होती है । यह भतृहरि कौन था ? इन शतकों के रचियता के जीवन के बारे में बहुत कम बातें ज्ञाव होता हैं । जनश्रुति से भी कुछ अच्छी सहायता नहीं मिलती है यह भतृहरि कौनसा भर्तृहरि था, इतना तक ठीक ठीक मालूम नहीं। चीनी यात्री इन्सिङ्ग ने वाक्यपदीय के कर्ता भर्तृहरि नामक एक वैयाकरण की मृत्यु ६१५ ई० में लिखी है। यह भी लिखा है कि उसने dure जीवन के श्रानन्द की तथा गृहस्थ जीवन के प्रमोद को रस्सियों १ इसके काल का पता नहीं है । २ सूक्ति-सन्दमों में प्रायः परस्पर विरोध भी देखा जाता है, अतः हम उनके साक्ष्य पर अधिक विश्वास नहीं कर सकते हैं।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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