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________________ ૪૪ संस्कृत साहित्य का इतिहास (४) सम्पूर्ण पर दृष्टि डालने के बाद हम कह सकते हैं कि इसकी औधी प्रयासपूर्ण है और शब्द तथा अर्थ की शोभा में यह आहेि और कुमारदाय की तुलना करता है। (५) कई बातों में इसकी तुलना भारवि से की जा सकती है :(क) विविध इन्दो' के प्रयोग की दृष्टि से माघ के चौथे सर्ग की ममा किरात के चौथे सर्ग से की जा सकती है। ख) बाह्यरूप रंग की विलक्षणता की दृष्टि से माथ के उन्नीसवें सर्ग की तुलना किरात के पंद्रह स से हो सकती है। इस सर्ग में माघ ने सर्वतोभद्र, चक्र और गोमूनिका लकारों के उदाहरण देते हुए अपने रचनामैपुण्य का परिचय दिया है उदाहरणार्थं, तीसरे श्लोक के प्रथम चरण में केवल 'जू' व्यंजन, द्वितीय में '5' तृतीय में 'भ' चतुर्थ में 'तू' है। (ग) 'माघ' के कुछ पद्यों में भारवि के नैविक भावों की सरलता और aaa विन्यास की शक्ति देखने को मिलती है | उदाहरण देखियेarated feet न विषीदति पौरुपे । शब्दार्थी सत्कविरिव द्वयं विद्वानपेक्षते ॥ (६) माघ की रचना में प्रसाद, माधुर्य और भोज तीनों हैं, वी की उक्तियों से यह बात विशेष करके पाई आती है। देखिये :--- शिशुपाल युधिष्ठिर से कहता है--- नृतां गिरं न गदसीति जगति पटद्वैविष्य । freate a staयस्तव कर्मणैव विकलकत्ता || १) 'माघ' व्याकरण ਕ कृषट्स है और यह कदाचित् हि मे refer ster oपाकरया के नियमों के प्रयोग के अनेक उदाहरगा atra seat है काल -- (१) मात्र के पिता का नाम दत्तक सर्वाश्रय और पितामह १. छन्दों के प्रयोग में माघ बडा कुशल है । अकेले इसी सर्ग में बाईस प्रकार के छंद हैं ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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