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________________ १३८ संस्कृत साहित्य का इतिहास करते हैं जिनकी अर्जुन को उत्कट अभिलाषा थी। आलोचना-जैसा ऊपर संकेत किया जा चुका है, कति ने अपनी बुद्धि पर ताला लगा महाभारत की कथा का अनुसरण नहीं किया, किन्तु उसमें अपनी ओर से कुछ नवीनतार पैदा कर दी है। उदाहरण के लिए स्कन्द के सेनापति में शिव की सेना का बल के साथ युज जीजिए, जिसमें दोनों ओर से दिन शस्त्रों का प्रयोग हुवा है। युद्ध के वर्णन को लम्बा कर देने से अक्षयों की गन्धों के साथ प्रणय-केली और अजुन का व्रत-भङ्ग करने की व्यर्थ शोशिश जैसे कुछ विचारों की कहीं कहाँ पुनमक्ति हो गई है। शैलो-~-पुरानी परम्परा के अनुसार भारचि में अर्थ-गौरव का विशेष गुण पाया जाता है। इसकी वन-योग्यता भारी और वचनोपर न्याल-शक्ति लापनीय है। (२) इसकी शैली में शान्ति-पूर्ण गर्व है जो एक दम पाठक के मन ঐ মন্তু সাৱা । ৪া অল্প ম ন্ত্রী যা স্ব স্ব স্ব ী को मिल जाता है। (३) प्रति और युवति के सौन्दर्य को सूक्ष्मता से देखने वाली इसकी दृष्टि बड़ी विलक्षण है । शिशिर ऋतु का वर्णन सुनिए---- कतिपयसहकारपुपरम्यस्तनुतहिनोऽल्पविनिद्रासिन्दुचारः । सुरभिमुखहिमागमान्तशंसी समुपययौ शिशिरः स्म कमन्धः ।। १ इस प्रकार के औराशिक अंश का समावेश सम्भक्त्या वाल्मीकि की देखा-देखी होगा। २ देखिए, उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम् । दण्डिनः पदलालित्य माधे सन्ति त्रयो गुणाः । ३ इसके बाद काम का अद्वितीय मित्र, बसन्त के आगमन का सूचक, हेमन्त का अन्तकारी, श्राम की अल्प मञ्जरी के कारण रमणीय, स्वल्प कोहरेवाला सिन्दुवार (सिंभालु ) के खिले हुए थोड़े से फूलो वाला शिशिर ऋतु का समय आगया ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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