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________________ सस्कृत साहित्य का इतिहास জানাজায় লালা, भूमिस्तोयं काम्थमाना' ददाति । सोत्साहाना नात्यसाध्यं नाराणा, मारधा सर्वधरलाः फलन्ति । भास] काष्ठई अनन् लभते हुताशन, भूमि खमन् चिन्इति चापि सोपस् । तिबन्धिनः किञ्चिन्नास्त्यसाध्य, न्यायेन युक्त च कृतं च सर्वम् ।। अश्वघोष ? ऐसे भी स्थल है जिन में मालूम होता है कि अश्वघोष का अनुकरण हर्ष ने नैषध में किया है। देखिए--- रामामुनेन्दूनभिभूतपमान, मन्त्रापयातोऽवमान्य भानु । सन्तापयोगादिव वारि वेष्टु, पश्चात् समुद्राभिमुखं प्रस्थे ।। [अश्वघोष] और, निजांशुनिर्दग्धमदङ्गमस्मभिमुधा विधुर्वाञ्छति लान्छनोन्मजाम् । स्वास्थना यास्पति तावतापि किं वधूवधेनैव पुनः कलक्षितः!! [ नैषधीय । १. वन्यमाना' पार उचित है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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