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________________ १२० सस्कृत साहित्य का इतिहास ऐसा मालूम होता है कि कालिदास , दिर और महेश तीनों देवों की पारमार्थिक एकता का मानने वाला है। कुमारसम के दूसरे वर्ग में उसने ब्रह्मा को समुत्ति की है, रघुवंश में विष्णु को परमेश्वर माना और दूसरे ग्रन्थों में शिव को महादेव माना है। सच तो यह कि वह काश्मर शंध सम्प्रदाय का अनुयायी था। 'विस्मरमा के बाद 'प्रस्थाभिज्ञान' होता है। यह सिद्धान्त छलके रूपको सें, विशेषत: अभिज्ञान शाकुन्तल में सम्यक उन्नीत हुआ है। जगत्-प्रकृति के बारे में माल्य और योगदर्शन के सिद्धान्तो का मानने वाला है। यह बात रघुवंश से बहुत अच्छी बाद प्रसीस होती है। बुढ़ापे में रघुवंशी जंगल में वर्षों तप करते हैं और अन्त में योगद्वारा' शशर छोड़ देते हैं। यह पुनर्जन्म में, जो हिन्दू धर्म के सिद्धातो मे सर से मुख्य है, विश्वास रखता है । इस विश्वास को उसने खष खोलकर दिखलाया है:--अगले जन्म में इन्दुमकी से मिलने की प्राशा से अज अकाल मृत्यु का अभिनन्दन करता है, अागामी जीवन में अपने पति से पुनः योग प्राप्त करने के लिए रति काम के साथ चिता पर अपने आप को जलाने को अद्यत है, और सीता इसीलिए कठोर तप करती है कि भावी जीवन में वह शम से पुन. मिल सके। (२५) कालिदास की शैली कालिदास वैदर्भी रीति का सर्वोत्तम प्रादर्श है। संस्कृत साहित्य का बस एक कराड से सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। ऐहोल के शिलालेख (६३४ ई.) में उसका यश गाया गया है और बारण अपने इर्षचरित की भूमिका में उसकी स्तुति करता हुशालिखता है:-- १ जीवन का अन्तिम लक्ष्य सर्वोपरि शक्ति के साथ ऐस्य स्थापित करना है; वह शक्ति हो ब्रह्म है जो जगत् की धारिणी है। यह एकता भी योगाभ्यास से ही सम्भव है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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