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________________ छठी शताब्दी का वाद ११५ मिहिर के भी नाम लिए जाते हैं; किन्तु अन्य स्वतन्त्र प्रमाणों से पता जगता है कि ये दोनों (२) छठी शताब्दी का वाद । (क) फगुसन ( Fergusson ) का विचार या कि विक्रमादित्य नामक किसी राजा ने १४४ ई० में हगों को परास्त किया था। अपनी विजय की स्मृति में उसने विक्रम सम्वत् की नींव डाली और अपने सम्वत् को प्राचीनता का महत्व देने के लिए इसे ६ शताब्दी पूर्व से प्रारम्भ किया । प्रो. मैक्समूलर के पुनरुज्जीवन वाद ने, जिसके अनुसार छ: सौ वर्ष तक सोने के बाद ईसा की शंचवीं शताब्दी में संस्कृत का पुनर्जागरण हुश्रा, इस बाद को कुछ महत्व दे दिया। किन्तु शिलालेख-लन्ध प्रमाण ले बनलाया कि न तो समलम्लर का वाद समभ्युपात हो सकता है और न फासन की, स्यामि १७ ई० ५० का सम्दत् कम स्ने कस एक शताब्दी पहले कृत या मालक सम्वत् के नाम से शिलालेखों में ज्ञात था। (ख) यथाशि फगुन का वाद उपेक्षित हो चुका था, तथापि कुछ बिहान् कतिपय स्वतन्त्र प्रमाणों के आधार पर कालिदास का काल छठी शताब्दी ही मानते रहे । डा. हानले (Hoernle) के मत से कालिदास महाराज यशोवर्मा (ई० को छटी शताब्दी) का माश्रित था। इस विचार का प्राधार मुख्यतः रघुवंशगत दिग्विजय का वर्णन और हूणों का खास देश (कश्मीर में रहना बताना है जहां केसर ३ जगत् के इतिहास में इस प्रकार के सम्वत् के प्रारम्भ होने का कोई दष्टांत नहीं मिलता, तो भी यह काल्पनिक वाद कुछ काल तक प्रचलित रहता रहा। २ बर्नल' प्राव रायल एशियाटिक सोसायटी (1६०६) ३ केसर का नाम मात्र सुनकर किसी ने कालिदास (कालि के दास) को काश्मीर निवासी मातगुप्त (माता से रक्षित) मान लिया है ! शायद इसका कारण नाम के अर्थ का साम्य है। पर इस विचार में कोई प्रमाण नहीं मिलता और इसके समर्थक भी नहीं हैं।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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