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________________ १ Aw कालिदास का काल-प्रथम शताब्दः (ई०पू०) ११३ सस्कृत-साहित्य में कोई दूसरा दृश्य नहीं है । यह मुद्रा-चिन्न शुङ्ग-सानाज' की सीमा के अन्तर्गत प्राप्त हुआ था । अत: कालिदास शङ्ग वंश के मन्त ( अर्थात् २५ ई० पू०) ले पहले ही जीवित रहा होगा। (ग) कालिदास की शैको कृत्रिमता से मुक्त है। यह महामाय से बहुत मिलती जुलती है। अतः कालिदास का काई श्रम सम्पन एवं कृत्रिम शेती उत्तम मादर्शभूत नासिक और गिरनार के शिलालेखों के काल मे बहुत पहरे होना चाहिए। (ब) कुछ शब्दों के इतिहास से ऐसा ज्ञात होता है कि संस्कृत कालिदास के काल के शिक्षितों की बोल चाल की भाषा थी । उदाहरणार्थ, परसेडी और पेनव शब्द का प्रयोग अमरकोष में दिए अर्थ से बिल्कुल भिन्न अर्थ में हुआ है। (क) कुछ वैहिक शब्दों के व्यवहार से ऐसा प्रतीत होता है कि वह बादिको अंशय साहित्य के सन्धि काल में हुआ, और यह हाल ई० पू० ले इसवी सन के प्रारम्स तक माना जाता है। इसदी बन्द के प्रारम्भिक काल के लेखक तक भी अपनी रचनाओं में किसी वैदिक शब्द का प्रयोग नहीं करते। (च) कालिदास ने परशुराम को केवल ऋषि माना है, विष्णु का अवतार नहीं। परशुराम को अवतार मानना पश्चात् में प्रारम्भ हुना। ( () =াৱিন্তু স্ত্রী স্বাস্থ ক লাক সম্বল ঈ সুর স্ত্রী है कि उन दोनों के लेख परस्पर निरपेक्षा नहीं है बहुत ही कम विद्वान् इसे अस्वीकार करने कि अश्वघोष कालिदास की अपेक्षा अधिक कृत्रिम । अश्वघोष प्राय ध्वनि के लिये अर्थ की उपेक्षा कर देता है। काव्य शैली का इतिहास प्रायः उसकी उत्तरोत्तर बढ़ती हुई कृत्रिमता का इतिहास है। ऐसी अवस्था में कालिदास को अश्वघोष (ईसा की प्रथम शताब्दी) से पहले रखना ही स्वामाविक होगा । यद्यपि दूसरे भी प्राधार है, तयापि यही अधिक न्यायपूर्ण प्रतीत होता है कि बौद कवि १ खण्ड०२८ और है। + - -
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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