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________________ सस्कृत साहित्य का इतिहास अन्तिम (५म) प्रक में उबशी को लेकर राजा प्रसन्नता के साथ अपनी राजधानी को लौटता है । इसके थोड़े समय बाद उक्त रन को एक उठाकर ले जाता है, किन्तु उस गीध को एक माया जमी कर देता है जिस पर लिखा है-~-'पुरुरवा और जवंशी का पुत्र आयु। इसने में ही एक तपस्विनी एक वीर क्षत्रिय बालक को श्राश्रम से शाजा के सामने इसलिये पेश करती है कि उस बालक को उसकी माया उर्वशी को वापस कर दिया जाए, कारण कि उस बाल ने आश्रम के नियमों का मन किया था। यधपि राजा को इस पुत्र का कुछ पता नहीं था, तथापि वह उसे देखकर प्रसन्न हो शठता है। उर्वशी अब काजा से बछुड़ जाने का विचार करके उदास हो जाती है। राजा मी खिन्न हो उठता है। थोड़ी देर बाद वर्ग से वर्ष का सन्देश लेकर देवर्षि नारद वहां आ जाते हैं । इन्द्र ने उस सदेश में देव्यों के विनाश के लिये राजा से सहायता करने की प्रर्थना की थी और उस जीवनपर्यन्त अर्थी के संयोग का आनन्द लेने की प्रज्ञा दी थी। (३) अभिज्ञान शाकुन्तल पर्व सम्मति से बह कालिदास की सर्वोत्तम कृति है जिसे उसने बुढ़ापे में प्रस्तुत किया था । गेटे (Goethe) तक ने भास्ट (Faust) की भूमिका में इसकी प्रशंसा की हैं। सर विजियम जोन्स ने इसका प्रथम इग्जिमा अनुवाद किया। इसमें सात अक हैं। प्रस्तावना में कहा गया है कि महाराज दुप्यन्त एक हरिण का तेजी से पीछा कर रहे थे कि वह महर्षि कश्व के तपोवन में धुप गए। तब महल रथ मे उतर कर महर्षि को प्रणाम करने के लिए पाश्रम में प्रविष्ट हुए, किन्तु महर्षि कहीं बाहर गए हुए थे। उस समय अस काअधिष्ठात्री महर्षि की पालित-पुत्रीशकुन्सला थी, जिसे वे प्राणी से अधिक प्यार करते थे। एक भौंरे ने उसे घेर लिया और वह सहायता के लिये चिल्लाई । उसकी सहेली अनसूया और प्रियम्वदा ने १ यह कथा प्रसंग से यह भी सूचित करती है कि स्त्री पुत्र की अपेक्षा पति को बहुत अधिक चाहती है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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