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________________ कौटल्य का अर्थशास्त्र यह अन्य के प्रारम्भ में कहता है:--- पृथिध्या नामे पालने च चावन्त्यर्थशास्त्राणि पूर्वाचायः प्रस्थाषितानि पायशस्तानि संहत्यकसिदमर्थशमनं कृतम् । इस अर्थशास्त्र के अन्दर कहीं भी बाधा दोष जहीं पाया जाता है। (३) यदि बागाक्य के बाद का कोई लेखक इस अन्ध का रचयिता हो तो 'सि सगरणक्यः', लेति 'चाणक:', और 'इत्याचार्या.' इत्यादि वाक्य कुछ अर्थ न रखें: क्योंकि तब तो स्वयं वाणक्य एक प्राचार्य (8) स्वयं कौटिल्य ने एक सौ चौदह बार पूर्वाचार्यों का उल्लेख करके उनके विचारों की सीब पालोचना की है। (4) मूल प्रन्थ में लेखक का नाम अथवा उल्लेख सर्वत्र एक वचन में हुआ है। (१) अन्य के प्रारम्भ में बड़ी सावधानी से तैयार की हुई विषयानुक्रमणी है जिसमें रूप-रेखा और निर्माण का अबाधारण ऐक्य देखा जाता है। इस अन्य के लिखे जाने से पहले भी अर्थशास्त्र विषयक अनेक प्रन्थ मौजूद थे और चाणक्य ने उन में काट-छाँट या रहो-बदल करके यह अन्ध तैयार किया था । यह बात स्वयं इस अन्य के भूख-पाठ से भी सिद्ध होती है। यह भी ठीक हो सकता है कि उसे अपने ग्रन्थ के निरूपरसीय विषयों के लिए बहुत सी आवश्यक सामग्री राज्य के अधिकारियों से प्राप्त हो गई होगी; परन्तु यह अन्ध चाणक्य की सौखिक रचना नहीं है यह सिद्ध करने वाला कोई प्रमाया नहीं है। (मा) अन्य का रचनाकाल । (1) डा. शामशास्त्री के द्वारा किए हुए इस अन्य के अनुवाद' के लिए लिखी हुई अपनी सक्षिह भूमिका में डा. फ्लीट ने इस प्रम का १. पैसूर से १९२६ ई. में प्रकाशित ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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