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________________ १८५७ - mobai - - - - - कोई अपराधी नही था रावण ही अपराधी था। और ये छत्तीस दुःख सदुःख भी होते हैं अबीज सीतापर इस दुःख की जिम्मेदारी नहीं थी किन्तु दुःख भी होते हैं और दुख भी होते हैं इस रावणपर थी। प्रकार कुल एकसौ आठ तरह के दुःख हुए। दुखो के इन भेदो को ठीक तौर से ध्यानमें रखने इस प्रकार वारह प्रकार के दुःख प्राकृतिक, के लिये निम्नलिखित नक्शा (फूचित्तु) उपपरकृत, स्वकृत के भेद से छत्तीस तरह के हुए। योगी होगा । भाधात प्रति अविषय रोग विषय रोध | अति- इसा- | इट- अनिष्ट-| लाधव | व्यग्रता सहवेदन श्रम | प्राप्ति | वियोग योग | - -- प्राकृतिक परकत स्वकृत सद्दुःख भवीजदुःख दुर्दुम्स - । एक सौ आठ भेद इसप्रकार वनेगे ११ सद्ः- ५० हुए, इसलिये पचासवां भेद कहलाया 'अबी दुःखमय प्राकृतिक आघात, २-सद समय प्राकृ. जखमय परकृत प्रतिविषय' । इस प्रकार कोई तिकप्रनिविषय ३-सदुःखमय प्राकृतिक विपयो भी भेद निकाला जासकता है और भेद के तीनो इसप्रकार बारहवा सददःखमय प्राकृतिक सह. अंका को जोड़ने से दुःखो का नम्बर जाना सकता वेदन । १३-सदुःखमय परकृत आघात, १४-सद है। जैसे 'तुदुःखमय स्वकृत आघात' नाम का दुःखमय परकृत प्रतिविपय आदि २४ का सद: भेढ ६७ वा भेट कहलाया । दुख के ७० ग्यमय परकृत सहवेदन।३६ वा सद् खमय स्वकृत स्वकृत के २४, आघात का १, तीनों अंकों को सहवेदन। इसीप्रकार छत्तीस अबीज दुखमय जोडने से हा हुए। के,छत्तीस दुईखमयके,नक्शेपरसे समझनेमे बहुत इन १०८ तरह के दु.खो मे प्रारम्भके २६ सुभोता है। जिस नम्बर का भेद हमे निकालना तरह के सदु.ख छोडने योग्य नहीं हैं वे विश्वहो वह नम्बर नीनो पंक्तियों की एक एक संख्या सुखवर्धन की दृष्टि से आवश्यक होने के कारण जोड़कर निकालना चाहिये। जिन संख्याओं के स्वागत योग्य है। हो । विश्ववधान में बाधा न पड़े जोड से वह नम्बर निकले उन संख्याओंवाले और ये दुःख भी बुध मात्रा मे कम होजायें ऐसा दुःखो को मिलाने से इच्छित हुम्वभेद निकल उपाय अवश्य करना चाहिये । वाकी अवील श्रायेगा। जैसे हमें चा दुखभेद निकालना दुःखमन्त्र के छत्तीस भेद और इसमय के है, तो अबीजःखके खाने में लिखा गया ३६, छत्तीस मंद इस प्रकार ये ७२ तरह के दल दर परकत के खाने में लिया गया १२, और प्रति- करने योग्य है इनका उपाय करना चाहिये। विषय के खाने में लिखा गया २. कुल मिलाकर दुख दूर करने के उपाय छ. तरह के हैं
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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