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________________ नत्यामुन mummerorminemamaee IIT अनेक नफारमनुष्यासे माग पदनसे मान रनि भित्र में गाया काको विशेष ज्ञान होता है। इससे मनुष्य जिस मनाया गया प्रकार अनुभवी बनता है, उसको प्रत्या गार पाशा HINDI वरावर प्रमाण न माननेपर भी प्रामाणिकता पर Pistart दृष्टि से उसका काफी मूल्य में प्रानुभार सहन irr Tim अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार गुरमित मित्र मृग -RH होते है और सब मनुष्य की प्राति भी एक मो ही प्रग ट Trrat नहीं होती इसलि। उसमें प्राय ग मिल पा PATR a बात कही जासकती है पर निति रस मी Mir c hi फिर भी इस 'प्राय.' का मापी उपयोग सोगा। नमी र म मे in ima इसे उपमान प्रमाण माना चागि । उपगान ARREARRITATE प्रमाण कार्यकारण गा स्वभाव का निमिन सम्र in atta तो नहीं होना पर अनेक स्थाना से सगागना मे मनिय यो गम में शामिन | नये स्थानपर मम्भावना की जानी जी मालगानि पर्याप्त उपयोगी होती है। कार माार पर पाना भी अनुभव कीया हैं, पर कान्पना मेरा स्वप्ना को यनु- यया | भव के नाम से न चलाना चादिका ___ RAHTERTAL तर्कप्रमाण । जिम्मा नीपर) लिया गया AnirRAINS अनेक पदार्थों के निश्रित सम्बन्ध का दीया जिस मन का शोना। पीक ज्ञान तर्फ है। इसका नत्र विशाल है ! 3. सयाम ATTRAPAREn) योगिता भी सब से अधिक है। यापि इसका तक काना वादिनना मूलाधार प्रत्यक्ष है। पर तर्क न हो तो अमला योग in hinा मिले। प्रत्यक्ष कुछ नहीं कर सकता है बहुत सं जानो को मप 4 में मार्ग हुम प्रत्यक्ष समझते हैं पर वास्तव में वे सर्फ हात सर से जय श्री मा. जमा सामे हूँ । निकट और दूर को ज्ञान हम प्रत्यन समझत मानेयाला विचार है। है पर वास्तव में वह तरूप है । शिशु अपनी पत्यक यम का नोकिया . आखा से अनेक रश्य देवता है पर निकट दूर तक पानपा अपने विचार मामन का झान उसे नहीं होता। पीछे आने-जाने या रस्वता है ! शालों को यह गाय गादसा. बोलने से उसे निकट दर का ज्ञान होने लगता क्याफि मात्र किसी पुराने जमाने के योग होते तय वह समझता है कि अमुक परिमाण का है इसलिये बदले हुए युग के निंय सोपोली दार्थ होनेपर इतना छोटा-छोटा दिखता है। बहुन बात युगरास होजाती है, तब असली विधीर भाख में पहनेवाले प्रतिबिम्न के छोटे सहायक लक रहा है। शाप भो न डेपन के अनुसार वह निकट दूरी का ज्ञान छन्न सबानका कार में लिया जाता ने लगता है। सर तक उसे यह सम्बन्ध ज्ञान सी है। हराएका अपने अपने शास्त्र तनही होदा तब तक उसे निकाटे दूर का शास्त्र को दूसरा माण नहीं मानना, तम सत्यानहीं होता। पित्रा में था सिनेमा के पर्दे पर सत्य का निर्णय वर्ष से ही किया सलमानसावक सही किया जासकता है। निकट दूरी के दृश्य दिखाई देते है | इसा अन्त में शास्त्रों की दुहाई देवा वार पर निकट दूर सममे जाते हैं ! अन्यथा शास्त्र के बारे में भी अन्यथा शास्त्र के बारे में भी नर्कसंगतता को दुहाई देना
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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