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________________ दृष्टिकार [ १७७] - - -- und रश्न-भेदभाव तो प्रकृति ने ही पैदा जातिपाति के बन्धन वाधा ही डालते हैं। प्रेमकिया है उसे तोडना क्या सम्भव है १ सम्बन्धो के लिये भी जातिपांति तोड़ना जरूरी है। उत्तर-जोमा कति पैदा किया इसप्रकार और भी शंकाएँ उठाई जासहै, जो अनिवार्य है. उसे न तोडना है। किन्त जो कती है जिसका समाधान सरल है। पहिले जो पुराकृतिक नहीं है अनिवार्य नहीं है हानिकारक अनेक परकार का आतिभेद बताया गया है और है, उसे ही तोड़ना है। रंग राष्ट्र जीविका थादिक कहा जो शंकाएं उठाई गई है वे यहां भी उठाई कारण बनी हुई जातियाँ तथा अन्य उपजातियाँ जासकती हैं और उनका समाधान भी वही है न प्राकृतिक हैं न अनिवार्य हैं बल्कि काफी हानि- जो वहा किया गया है। तथा यहा की शकाएँ कारक है इसलिये उन्हें तोडकर एक मानवता वहा भी उठाई जासकती थी और उनका समापैदा करना चाहिये। धान मी यहीं के समान होता। एश्न-छोटी छोटी जातियाँ होने से कभी इस प्रकार मनुष्य-जाति की एकता के भाभी धनिक की लड़की को धनिक पर नहीं लिये हरएक तरह का विजातीय विवाह आवमिलता इसलिय गरीब वर के साथ उसका विवाह श्यका है। हा, इतनी बात अवश्य है कि स्त्री-पुरुष होजाता है। जातिपाति न रहन से धनिक की एक दूसरे को अनुकूल और सह अवश्य हो। लड़की को कही न कही धनिक पर मिल ही अगर किसी को काला साथी पसन्द नहीं है, जायगा इसरकार कभी कभी गरीब वर को जो दूसरी भाषा बोलने वाला पसन्द नहीं है तो भले सौभाग्य प्राप्त होजाता है वह छिन जायगा। हो यह ऐसा साथी ने चुने। परन्तु उसमें इन उत्तर-ऐसे सम्बन्धो के मूल में अगर रेम कारणों की ही दुहाई देना चाहिये, न कि जाति नही है किसी विशेष कारण से परस्पर आकर्षण की। दूसरी बात यह है कि अगर दो व्यक्तियो नहीं है, योग्य पात्र न मिलने की विवशता है तो ने अपना चुनाव कर लिया उनमें एक ब्राह्मण है यह दोनों का दुर्भाग्य है। लड़की गरीव की हो दूसरा शूद्र, एक आर्य है दूसरा अनार्य, एक या श्रमोर की, धन के कारण उसके मन मे या गुजराती है दसरा मराठी, इतने पर भी दोनो शरीर में कोई सुखकर विशेषता होने का नियम रेम से बँधना चाहते हैं तो इसमें तीसरे कोनहीं है। इसलिये गरीब वर को धनिक की पुत्री समाज को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार से कोई विशेष लाभ नहीं है। बल्कि धनिक की नहीं है। विवाह के विषय में " मियाँ बीवी राजी पुत्री स्वर्चीली होगी, शरीरश्रम में कम होगी इस- तो क्या करेगा काजी की कहावत परायः चरिलिये उस वर की पूरी परेशानी है। पर अगर तार्थ होना चाहिये। अनेक तरह का जो कल्पित मानलिया जाय कि यह उस वर का सौभाग्य है जातिभेद है, किसी को उसी के भीतर सयोग्य तो इसी कारण एक धनिक लडकी को गरीब के सम्बन्ध मिल रहा है और कारणवश अन्यन्न गले बाघ देना पड़े यह उस लड़की का बड़ा नहीं मिलता तो वह कल्पित सीमा के भीतर ही दुभोग्य भी तो है। सम्बन्ध कर सकता है, इसमें कोई बुराई नहीं है। सारा टोटल मिलाने पर ऐसे सम्बन्धो से परन्तु सीमा के भीतर रहने के लिये सुपात्र को समाज को लाभ नहीं। एक का जितना लाभ, छोड़ना और अल्प पात्र को ग्रहण करना बुरा है। दूसरे का उससे ज्यादा नुकसान। यो जिसका विवाह और सहभोज, ये मनुष्य जाति की लाम बताया जाता है उसका भी काफी नुक. एकता के लिये बहुत आवश्यक है । यद्यपि कहीं सान है। कहीं इनके होने पर भी एकता में कमी रहजाती ____ हा । ऐसे सम्बन्धो के मूल में प्रेम हो तब है, परन्तु इसका कारण विजातीय विवाहो का कोई हानि नहीं, पर ऐसे प्रेमसम्बन्धो के लिये बहुत अल्प संख्या में होना है। इसलिये इनकी
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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