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________________ द्वाष्टका - - ४ - - - अर्थ है । धेषभूपा और भाषा को अगर किसी को भी गोबर से लीपना, बिजली के उजेले में भी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति कहा जाय तव तो समाई जलाना शायद संस्कृति और सभ्यता का उसकी दुहाई देना व्यर्थ है। प्रत्येक देश की रक्षण है। वास्तव में इस प्रकार के अन्धनुभाषा कुछ शतान्दियों के बाद बदलती रही है। करणां को संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कहना जो प्राकृत भापाएँ दो हजार वर्ष पहिले भारन उन अच्छे शब्दो की मिट्टी पलीत करना है। में प्रायः सर्वत्र बोली जाती थी और जो अपभ्रंश ___मनुप्य, जन्म के समय पशु के समान भाषाएँ हजार वर्ष पहिले ही प्राकृत की तरह होता हे ! उसको युग के अनुरूप अच्छा से बोली जाती थी, आज इनेगिने पंडितों को छोड. अच्छा मनुषय बनाने के लिये जो प्रभावशाली कर उन्हें कोई समझता भी नहीं, फिर बोलनेकी तो प्रयत्न किया जाता है उसका नाम है संस्कृति, वाद ही दूर है। अगर भाषा का नाम संस्कृति और दूसरे को कष्ट न हो इस प्रकार के व्यवहार हो तव तो हम उसका त्याग ही कर चुके हैं। का नाम है सभ्यना। इस प्रकार की सभ्यता यह बात दूसरी है कि अहंकार की पूजा करने और संस्कृति का रुढ़िया के अन्ध-अनुकरण के के लिये हम उन मत भाषाओं के नाम के गीत साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। गात हा, परन्तु हमारे जीवन में उनका कोई यदि किसी जमाने मे चोर डाकुओं के डर व्यावहारिक स्थान नहीं रह गया है। लेटिन, क मारे हम मकानों में अविक विडकिया नहीं संस्कृत आदि सभी भाषाओं की यही दशा है। रखते थे, और अब परिस्थिति बदल जाने से इसलिये वह सभ्यत्ता तो गई। ___ रखते हैं तो इसका अर्थ सभ्यता और संस्कृति वेषभूषा बदलने के लियं तां शताड़ियों का त्याग नहीं है। समयानुसार स्वपरसुखबद्धक नहीं, दशाब्दियाँ हो बहुत हैं । भारत के श्रार्य जो परिवर्तन करने से सस्कृति का नाश नहीं होता, पोशाक पहिना करते थे, उसका कहीं पर भी बल्कि. संस्कृति का नाश होता है रूढियों की नहीं है । उसके आगे की न जाने कितनी पीढ़ियों गुलामी से । क्योंकि सदियो की गलामी से वद्धिगजर गई। उत्तरीय वख के पीछे अंगरखा, विवेक की कमी मालूम होती है जोकि मनश्यत्य कुरता, कोट, कमीज आदि पीढियाँ चली पानी की कमी है, और जड़ता को वृद्धि मालूम होती हैं। वही बात नारियों की पोशाक के विषय में है जोकि पशुत्व की वृद्धि है। सरमति का काम है। वाहन, नगर रचना आदि समी वातो में प्राणी को पशुच से मनुपयत्व की ओर लेताना विचित्र परिवर्तन होगये है। संसार के सभी देशो है, न कि मनुष्यत्य से पशत्व की ओर लौटाना की यह दशा है। पुराने युग के चित्र तो श्रय यदि कोई देश अपनी पुरानी अनावश्यक चीजों अजायबघरो और नाटक-सिनेमा के तिहासिक से चिपट रहा है और दूसरों के अच्छे तत्वों को चित्रण में ही देखने मिलते है। सभ्यता और ग्रहण नहीं कर रहा है या ग्रहण करने में अप. संस्कृति के नाम पर उन पुरानी चीजो को छाती मान समझ रहा है तो वह मंस्कृति की रक्षा नही. से चिपटाये रहने की जरूरत नही रही है। नाश कर रहा है। सभ्यता और संस्कृतियों के नामपर एक भारत पर एक भारत मोगोपभोग की पुरानी चीजों के रण में वासी अंग्रेज गर्मी के दिनों में भी जब अपनी सभ्यता और संस्कृति नही रहनी । यदि गर्न चुम्त पोशाक से अपने शरीर को वडल की तरह जमाने में हमारे पास अंग संहा बागी फत बालता है, तब उसका यह पागलपन प्रजा. था तो इसका यह अर्थ नहीं है कि हमारी माना यवघर की चीज होती है। परन्तु यह पागलपन और संस्कृति शख में जा बेटी है। निशिती सभी देशो में पाया जाता है, इसलिये अजायव- देश में आम नहीं थे, खजूर थे, नो इसग भी घर मे कहा तक रक्खा जा सकता है ? सगमर्मर यह मतलब नहीं है कि उसी सभ्यता बनर पर
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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