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________________ धाष्टिकांड - - - - - - - - - - मनुष्यता है उसको पीस डालने की चेष्टा करना कष्ट नहीं मालूम होता तो इसमे किसी तीसरे । मनुष्यता का नाश है। इससे वंश परंपरा के या समाज को कुछ कहने की क्या जरूरत है लिये वैर ही बढ़ता है, और बारी बारी से सभी इसमे दोनो को ही अपना अपना खयाल व का नाश होता है। और वर्तमान में भी हम चैन लेना चाहिये । से नहीं रहने पाते। ईमानदारी प्रेम आदि सद्- जिनमें यह वर्णाभिमान अच्छी तरह घुरु गुण ही एक दूसरे को सुख देनेनाले हैं । ये हुआ है, किन्तु नैतिक दृष्टि से जब वे इस जा जिनमे हो उन्हें ही अपना मित्र, बन्धु और सजा- मद का सहारा नहीं ले पाते, तब इस प्रकार व तीय समझना चाहिये, भले ही वे किसी भी रंग छोटी छोटी बातों को अनुचित महत्व देने लग के हो। जिन में ये न हो उन्हें ही विज्ञातीय समः है। अगर गंधभेद की यह बात इतनी भयंक झना चाहिये फिर भले ही वह अपना सगा होती तो भारत में यूरेशियन-जो कि अपने व भाई ही क्यों न हो। इस प्रकार की नि:पक्षता एंग्लोइंडियन कहते है क्यो बनते ? अमेरिय को अगर हम रख सके और उसका उदारता से आदि देशों में इतना विरोध रहने पर भी ऐ उपयोग कर सके तो मनुष्य म जो पशुत्व हे सम्बन्ध होते ही हैं। भारतीयो के पूर्वज भी दर उसका अधिकाश दूर हो जाय, इयो, अशाति सम्बन्ध कर चुके हैं, इलिये आज भी उना आदि का तांडव कम हो जाय । अगर एसा न काले गारे का मेद बना हुआ है, और यह भे होगा तो एक दिन ऐसा आयगा जब दुनिया क छोटी छोटी उपजातियों में भी पाया जाता हे मनय रंगा के नामपर दो दल मे बँटकर राक्षसी फिर जातियों में ही क्यो १ प्रत्येक व्यक्ति यद करंगे और जिसकी परम्रग सेकड़ा व शिरीर की गंध जुदी होती है, परन्तु इसीसे वैवा तक जायगी भोर इस अग्नि में मनुष्य जानि हिक सम्बन्ध का विस्तार नहीं रुकता। बल्लि स्वाहा हो जायगी। वैवाहिक सन्यन्ध के लिये अमुक परिमाण जातिमेट को तोडने का उपाय तो हृदय शारीरिक विषमता आवश्यक और लाभकर मान की उदारता ही है। परन्तु इसका एक मुख्य जाती है, इसीलिये बहिन-भाई का विवाह शारीनिमित्त पारम्परिक विवाह सम्बन्ध है। जाति के रिकष्टि से भी बुरा समझा जाता है। स्त्री-पुरुप नाम पर मनध्यमान में वैवाहिक क्षेत्र की कैटन के शरीर में ही रूप, रस, गन्ध, स्पर्श की विपहोना चाहिये। अगर अधिक परिमाण में से मता अमुक परिमाण में पाई जाती है। इसलिये विवाह सम्बन्ध होने लगें तो दोनों के बीचकामी विषमनाओ की दुहाई देकर मनुष्यजाति के अन्तर अवश्य ही कम हो सकता है। हा, इस टुकड़े नहीं करना चाहिये। अगर इस विषय पर काम मे विवाह सम्बन्धी समस्त सुविधाओं का कुछ विचार भी करना हो तो यह विचार व्यक्ति स्वयाल अवश्य रखना शहिय पर छोडना चाहिये। विवाह करनेवाला व्यक्ति कहा जाता है कि काली, गोरी आहे इस बात को विचारले कि जिसके साथ मैं जातियों के शरीर में गन्धकी एक विशेषता होती सम्बन्ध जोड रहा हूँ उसको गन्ध और रग स्पर्श है जो एक दूसरे को दुर्गन्ध भालूम होती है। श्रादि मुझे सहा है कि नहीं। यदि उसे कोई यह ठीक है । मैं पहिले ही कह चुका हूँ कि यह आपत्ति न हो नो फिर क्या चिन्ता है ? एक बात रंगभेद अलवाय, भोजन आदि के भेदसं सम्बन्ध और है कि कोई भी गध हो, जिसके संसर्ग में रखता है, इसलिये वर्णके समान गन्ध भी हम आते रहते हैं उसकी उम्रता या कटना बली थोडा बहर मे हो, यह स्वाभाविक है। परन्तु जाती है । एक शासभोलो मछलियों क बाजार यह तो व्यक्तिगत बात है। अगर विभिन्न वर्णके में वमन कर देगा, परन्तु मछुओं को वहा सुगन्ध नम्पनि में प्रेम है, शारीरिक मिलन में भी उन्हे ही आती है। इसलिये गंवादि की दुहाई देना
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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