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________________ [१२] सत्यात - - - - - - - - -- - - - - - - - - -- -- - - - सत्यभक्त का सत्धेश्वर तू परम सच्चिदानन्द । भगवान सत्य ( सत्येशा) परम विवेकाधार धर्ममय परमपिता सुखकन्त ॥ भगवान अगम अगोचर कहा जाना है। सब गुणदेवों का स्वामी न गुणाधीश भगवाना लागे वर्ष से बडे बडे विद्वान उसे जानने की कोन तू तेरा कोन निशान 11४1 कोशिश करते भारहे हैं फिर भी अच्छी तरह सत्यभक्त की भावुकता का प्यारा ईश्वरवाद। जान नहीं पाये इसलिये अगम है, और आरसों से सत्यभक्त की सजग बुद्धिका परम अनीश्वरवाद ॥ देख नहीं पाये इसलिये अगोचर है। इतने पर ईशानीश समन्वयमय तू सद्विवेक को खान। भी उसे जानने देखने का प्रयत्न होता ही रहता कौन तू वेग कौन निशान ॥५॥ है, होना भी चाहिये। तेरा कण पाकर कहलाते अन सर्वज्ञ महान। इस प्रयत्न में किसी ने यह निश्चय किया पर न कभी हो सकता तेरी सीमाओं का ज्ञान ॥ कि भगवान है, वह सृष्टि का मूल है, विधाता है, कण कण में डूबे तीर्थंकर ऋपिमुनि महिमावान॥ रक्षक है, न्यायी है, दएइदाता है। किसी ने यह कौन तू तेरा कौन निशान ॥६॥ निश्चय किया कि ऐसा कोई भगवान हो नहीं अगम अगोचर महिमा तेरी तेराश्रय परात। सकता । वह असिद्ध है, युक्ति-विरुद्ध है। सृष्टि के दुद्धि भावना के संगम से होता तेरा भात ॥ ___ सारे काम प्रकृति के अनुसार होते हैं। सत्यभक्त ने पाये तुझमें धर्म और विज्ञान । दोनो पक्षों के पास कहने के लिये काफी कौन तू तेरा कौन निशान ॥ ७ ॥ है, फिर भी इस विवाद का अन्त नहीं है इसलिये " दुखना यह चाहिये कि इस विवाद से लाभ क्या ईश अनीशवाट के झगड़े छोड़ें सय विद्वान ! अपनी मति गति लेकर करदे जगको स्वर्गसमान । है ? इसका लक्ष्य क्या है ? सत्यभक्त, कर चिदानन्दमय सत्येश्वर का ध्यान । दोनों पक्ष कहेंगे कि हम सत्य की खोज कोन तू तेरा कौन निशान 11 करना चाहते हैं। क्योंकि सत्य के बिना हम कल्याण अकल्याण, भलाई-बुराई, पथ-कुाभ का गीत-४ पता नही पासस्ते ! न खुद सुग्नी हो सकते है न मैं क्या तेग धाम बताऊं। जगत को सुखी कर सकत हैं। सत्यदृष्टि से देखू तुझको तो कण कण में पाऊ॥ इस प्रकार ईश्वरवादी अनीश्वरवाटी बोना मैं क्या तेरा धाम बताऊं ॥ १॥ ही सत्यपर, मलाईपर सुखपर इकट्ठे होताते हैं। वीजरूप में भरा है कण कण में कल्याण। इसलिये ईश्वर के स्थान पर सत्य की प्रतिष्ठा सत्यभक्त पढ़ते कण कण में तेरा अकथ पुराण || करना अधिक उपयोगी है । उसे ईश्वरवादी श्री अब 'तू कहा नहीं है। इसका उत्तर क्या बतलाऊं, वरवादी दोनों ही मानते हैं। बुद्धि और भावना मैं क्या तेरा शाम बताऊं ॥ २॥ दोनों को सन्तोप होता है । ईश्वरवादी सत्य में काशी गया प्रयाग अयोध्या शन'जय ओंकार। ईश्वर देखते हैं, अनीश्वरवादी सत्य में नियम रुसलम सम्मेद मदीना मका गिरिगिरिजार व्यवस्था प्रकृानि आदि देखते हैं। दोनों ही उससे समी तीर्थ है तेरे श्राधम सभी जगह मैं ध्या। श्रा, मैं क्या देश धाम बता ईश्वर को सच्चिदानन्द भी कहा जाता है। मन्दिर मसजिद चर्च जिनालय सब धर्मालय यह नाम बहुत सार्थक है। मूल में सत् है इसे सभी जगह कल्याण लिखा है वेरे पाठ अनेक ईश्वरवादी भी मानते हैं और अनीश्वरवादी भी अहा पढू' कल्याण वहीं मैं तेरा तीर्थ वना मानते हैं । वैज्ञानिक कहते हैं कि सत् में से चित् मैं क्या तेरा धाम बताऊं ॥४॥ (चैतन्य ) की सृष्टि हुई है और चित् में से
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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