SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७६ ) युद्ध और कर्म शक्तियोंकी पूर्ण पराजयका महान् अलङ्कार है, प्रयोग किया (देखो 'दि पमन्यन्ट हिस्टी औफभारतवर्ष के० पन० आइयर कृत भाग २) । इस प्रकार जय कि ऐतिहासिक द्रोपदीको युधिष्ठिर और भीम जो उसके पतिके जेष्ठ भ्राता थे अपनी पुत्री के समान और अर्जुनसे छोटे नकुल और नादेव अपनी मानाके समान मानते थे, तो उसकी (louble) अर्थात् काल्पनिक द्रोपदी पञ्चज्ञान इन्द्रिय और जीवन सत्ताके सम्बन्धको दर्शाने हेतु पाँचोंकी स्त्री विण्यात हुई। एक और कथाके अनुसार जो उसने सम्बंधित है सूय्य (शुद्धात्माके चिन्ह ) ने उसको एक अद्भुत माजन (घटलोई ) दिया था, जिसमें से सब प्रकारके भोजन और और पदार्थ पच्छानुसार मिलते थे। इस इच्छित वस्तुको देनेवाली लाईकी व्याख्या इस भांति है कि यात्मा स्वमावसे परिपूर्ण है और बांध सहायताले स्वतत्र है। दुष्ट दुस्सासनका द्रोपदाको सुन्दग्नाको जनताके समक्ष, उसके वस्त्रको जो अलोकिक ढंग से बढ़ता गया उतारकर प्रत्यक्ष कर, देने में असमर्थ रहना एक ऐसी बात है जिस से जीवके स्वभाव पर प्रकाश पड़ता है, क्योंकि बंध (द्रोपदी की रजस्वला)-अवस्थामें जीव सदैव माहेकी तहों में इतना लपेटा हुमा है कि किसी प्रकार भी उसकी नग्न छविका दर्शन करना सम्भव नहीं है! जीव सनाफा एक और सुन्दर अलंकार श्रीमती फगोइयाकी जापानी कथामें पाया जाता है उसके पांच चाहनेवाले पांच __ इन्द्रियों के सूचक हैं जो सबके सब उसको उन असलो चीजों
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy