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और (६) अंश। और एक दूसरे मन्त्र में उनकी संख्या सात कही गई है, यद्यपि उनके नाम वहां नहीं दिये गये है। एक "तीसरी जगह आठका वर्णन है मगर अदिति अपने पाठ पुत्रों में से जो उसके उदरमे उत्पन्न हुए थे देवताओं के समक्ष सातको लेकर पाई और मार्तण्ड (आठवे ) को अलग कर दिया कि इन पुत्रोंके नाम जो वेदोंके
मिन्न २ मागोंमें दिये हुये है एक दूसरेसे नहीं मिलते हैं - इसलिये इस वातका जानना कि प्रादित्य कौन कौन थे • कठिन है । शतपथ ब्राह्मण और पुराणोमे आदिन्योकी संख्या १२ वारह तक बढ़ा दी गई है।" .
भविष्य-पुराणका कयन है (देखो दि पर्मान्यन्ट हिस्ट्री औफ भारतवर्ष, भाग १ पृष्ठ ४८१ च ४८६ ) कि आदित्यों को देवताओं में सबसे पहिले होने के कारण प्रादित्य कहते हैं। कुछ और लेखकोंके मतानुसार प्रादित्य शम्शी साल के बारह महीने है (देखो दि टर्मिनालोजी औफ दि वेदज पृष्ट ५५)
और उनको श्रादित्य इम कारण कहते हैं कि वह संसारमेंसे प्रत्येक वस्तुको स्त्रींच लेते है। इस यातका कि इस कथनका ठोक अर्थ क्या है समझना सहज नहीं है, परन्तु यह ज्यादा करीन कयास है कि आदित्य आत्माके, जिसकी शुद्ध अवस्था का रूपफ सूर्य, जो ज्ञानका एक उत्तम चिह है, मुख्य ( या प्रारम्भिक ) गुणों के सूचक है। इसलिये आदित्य जिनकी संज्ञा चाहे कितनी हीक्यों न हो, क्योंकि यह मनुप्यकी विमागन्दी