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( २५ ), उसके सात ७ हाथ सात प्रकारकी ऋद्धियोंके सूचक है। जो शरीरके सात मुख्य चक्रोंमें सुपुप्ति अवस्थामें पड़ी है। मेंढ़ा जो इस देवताका मसूत्र (प्रिय ) वाहन है, वाह्य आत्माका चिह्न है ( देखो दि की औफ नालेज, अध्याय आ४८) जिसका वलिदान अस्ती व्यक्तिकी उन्नतिके लिये करना होता है। लकडीके तख्ते जिनसे प्रति पैदा होती है वह पौलिक शरीर और द्रव्य मन हैं जो दोनो मोक्षके, पहिले मस्म ( आत्मासे पृथक् ) हो जाते हैं। चूंकि आत्माके शुद्ध परमात्मिक गुण तपस्या करनेसे अर्थात् तपके द्वारा प्रगट होते हैं, इसलिये अग्नि को देवताओका पुरोहित कहा गय है जिसके निमन्त्रण पर वह आते है । अन्ततः तपानि आत्माको पूर्वजोके स्थान (निर्वाण क्षेत्र) पर पहुंचाता है जहां वह सदैवके लिये शान्ति, ज्ञान
और आनन्दको भोगता है। ___ देवताओं के युवक पुरोहित अग्निका ऐसा स्वरूप है। यह कोई पुरुष नहीं है बल्कि एक काल्पनिक व्यक्ति है और काल्प"निक व्यक्ति भी आगका सूचक नहीं है जैसा कि वेदोंके योरोपियन अनुवाद करनेवालोंने ख्यान किया है वल्कि प्रात्माके कर्मों के भस्म करनेवाली अग्निका जो तपश्चरणमें प्रगट होती है। एक यही रूपक इस घातके जाहिर करनेके लिये यथेष्ट है कि जिस बुद्धिने उसको जन्म दिया वह प्रात्रागमन और कर्मके सिद्धांत से जरूर जानकारी रखती थी, और यह बात कि इस मसलेको (अलंकारकी भाषामें छिपाकर न्यान किया है इसकी सूचक