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________________ (२) । यह संमेलन केवल आत्मारामजी महाराजको सनुदायके जैन मुनिओं का था. यदि इससे जुदे जुदे कुल समुदायोंका एकत्र संमेलन होता तो अधिक श्रेयस्कर और कार्यसाधक होता इसमें शक नहीं ! परंतु यहां मालूम करना चाहिये कि, इस विषयमें इस समुदायका किंचिन्मानभी दोष नहीं निकाला जा सकता ! . आचार्य मुनिश्रीने अपने प्रमुखपनेके विद्वत्ताभरे व्याख्यानमें मालूम कियाथा . कि, ऐसी एकत्र कॉन्फ्रन्स करनेका आंदोलन हो चुकाथा ! परंतु कितनेक कार. गोस सर्वका एकत्र होना असंभव सा जान यह एकही समुदायका सम्मे.. लन हुआ है. ___ कहनेसे करना अच्छा" इस सिद्धांतानुसार उक्त समुदायके मुनियोंने जो स्तुत्य प्रवृत्ति की है उसका अनुकरण कर अन्य समुदायवालेभी आगेके लिये एक सह मत हो एकत्र जैन मुनिमंडल सम्मेलन करेंगे ऐसी आशा की जाती हैं ! " मुंबई समाचार" ( सोमवार-ता. २४-७-१२. . . Le..JP सवाडौंदा शहरमें श्रीआत्मारामजी महाराजके साधु सम्मेलनने जो का उत्तम अगुआपन किया है वह उनके अन्य बंधुओको भी समय वीतने पर एकांत वाससे जाहिर होनेमें उपयोगी हुए विना न रहेगा ! नुनिश्री वल्लभविजयजी तथा सम्मेलनके प्रमुखने अपने व्याख्यानमें जो विचार दर्शाए हैं वे जैसे साधु सम्मेलनको आवश्यकता सिद्ध करने वाले हैं, वैसे ही . साधुओं के साथ जैनशासनकी उन्नति करनेके मार्ग दिखानेवालेभा हैं. ऐसा बंधड़क कहा जा सकता है ! सभाध्यक्षके व्याख्यानमें की हुई सूचनाएँ जितनी साधुनोंको लक्षमें लेने योग्य है, उतनी ही सकल जैन संघकोभी ध्यानमें लेनी योग्य हैं. साधु सम्मेलनकी उपयोगितामें जिनके मन अद्यावधि संशयग्रस्त हो या डिगमिगाते हो वह इस एकही उदाहरणसे अपनी भूल देख उसके सुधारने का और सन्नेलनके कार्य कर्ताओंको सहानुभूति देनेका अपना फरज समलेगे!
SR No.010821
Book TitleMuni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Sharma
PublisherHirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad
Publication Year1912
Total Pages59
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tithi, Devdravya, & History
File Size3 MB
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