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है ! एक ऐसा बनाव मेरे ध्यानमें है कि, किसीने एक शखसको दीक्षा दे दी, वह चौथे दिनही उपाश्रयमेंसे अच्छे २ चंदरवे पूठिये तथा पुस्तक वगैरह जो हाथ आया लेकर रातोरात रफूचक्कर हो गया ! यह विना परीक्षा किये काही फल है ! पूर्वोक्त वनाव अपने संघाडेमें नहीं वना तोभी अपनेको यह नियम जरूर करना चाहिये कि, कमसे कम एक महीना तक तो उसकी परीक्षा अवश्य करनी. बादमें योग्य मालूम होतो दीक्षा देनी. ऐसा होनेसे दीक्षा लेनेवालेके चालचलनका पता लग जायगा. और उसको साधुओंकी रीतिभांतिकाभी प्रायः कितनाक ज्ञान हो जायगा. साथही इसके इस वातकीभी जरूरत है कि, जब कोई दीक्षा लेने वास्ते आवे तो उसके संबंधियों को सूचना कर देनी चाहिये. जिससे कि कोई प्रकारके क्लेशद्वारा धर्ममें हानि न पहुंचे.
इस प्रस्तावका मुनिश्री वल्लभविजयजी, मुनिश्री दौलतविजयजी, मुनिश्री कीर्तिविजयजी, मुनिश्री लावण्यविजयजी, मुनिश्री जिनविजयजीने अनुमोदन कियाथा.
यह प्रस्ताव सर्वकी सम्मतिसे पास किया गया. बाद इसके समय हो जानेसे दूसरे दिनके लिये मुचना देकर कार्य वंद किया गया.