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साथ ममत्वका संबंध हो जायगा तो उस वक्त उसका कहना अवश्यही मानना पडेगा ! अगर न मानेगा तो झट वो फरंट हो जायगा ! जिसका जरा दीर्घदर्शी वन विचार किया जाय सो, हम तुमको तो क्या प्रायः कुल आलमकोही अनुभव सिद्ध हो रहा है कि, आजकल मायः कितनेक साधु शेठोंके प्रतिवंधमें ऐसे प्रतिवद्ध हुए होंगे कि, शेठका कहना साधुको तो अवश्यही मानना पडता है ! शेठ चाहे साधुका कहना माने या न माने यह उसकी मरजीकी बात है ! तो अब आप लोक ख्याल करें, ऐसी हालतमें शेठ गुरु रहे कि साधु ? सत्य है जिन वचनसे विपरीताचरणका विपरीत फल होताही है ! इस लिये यदि साधुको सच्चे गुरु बने रहना हो तो शास्त्राज्ञाविरुद्ध एकही स्थानमें रहना छोड, ममत्वको तोड, गुरु वनना चाहते शेठोंसे मुखमोड़, अन्य देशोके जीवापर उपकार बुद्धि जोड, अप्रतिवद्ध विहारमेंही हमेशह कटिवद्ध रहना योग्य है। ताकि, धर्मोन्नति के साथ आत्मोन्नतिद्वारा निज कार्यकी भी सिद्धि हो. मैं मानता हूं कि, मेरे इस कथनमें कितनाक अनुचित भान होगा मगर, निष्पक्ष होकर यदि आप विचारेंगे तो उमीद करता हूं कि, अनुचित शद्धके नबका आपको अवश्यही निषेध करना पडेगा. तथापि किसिको दुःखद मालूम होतो, उसकी वावत मैं मिथ्या दुष्कृत दे, अपना कहना यहांही समाप्त करताहूं.
इस प्रस्ताव पर मुनिश्री चतुरविजयजीने अच्छी पुष्टि कीथी वाद सर्वकी सस्मतिसे यह प्रस्ताव बहाल रखा गया.