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भगवती के अंग
प्रश्न- शिकार का रिवाज न होता तो जंगल शेर, बाघ, चीता आदि जंगली जानवरों से भरे होते, मनुष्य को खेती करना, आना जाना भी कटिन होता, खेत शूकरों और अन्य जानवरों ने खालिये होते ।
उत्तर- जिस समय आपके लिये शिकार करना जरूरी था उस समय वह स्वरक्षक घात था, तक्षक नहीं। आज भी जितने अशी मे शिकार जरूरी है उतने अंशो में वह स्वरक्षक है । पर शौक पूरा करने के लिये निराध प्राणियों की हत्या करना तक्षक घात है जो कि पूरी तरह पाप 1
तक्षक घात- विश्वकल्याण के विरुद्ध किसी प्राणी को खाजाना या उसके जीवन का और किमी तरह उपयोग करना भक्षक घात है । यों तो तक्षक और भक्षक एक ही श्रेणी के पाप हैं पर कहीं कहीं तक्षक की अपेक्षा भक्षक में अधिक पाप है। जैसे मनुष्य को मार डालना एक बात है पर मनुष्य को खाजाना दूसरी । इसी प्रकार ऐसे भी प्रसंग है जब भक्षण से तक्षण में अधिक पाप होता है बहुत आदमी मांस खाजाँयँगे पर करुई का काम न कर सके बहुत से मांसभक्षी तो पशुवध देख भी नहीं सकते सिर्फ अभ्यासवश मांस खाजाते हैं । इससे मालूम होता है कि भक्षण की अपेक्षा तक्षण में कहीं क्रूरता की अधिक जरूरत होती है। इस प्रकार कहीं तक्षण अधिक पाप है कहीं भक्षण, इसलिये दोनों को बराबर कहना चाहिये ।
भजन तो है इसलिये उसे तक्षण के समान क्यों कहा जाय उसे सहज पाप ही क्यों न कहा जाय !
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उत्तर - जो भक्षण सहज है वह सहन घात में शामिल किया जायगा क्योंकि उसे प्राणी रोक नहीं सकता पर ऐसा भक्षण जो रोका जा सकता है वह भी जब किया जाता है तब सहज नहीं कहलाता। अपनी जीवनरक्षा के लिये अपने समान या अपने से अधिक चतन्य
प्राणी को खा जाना तो मक्षण वात है ही साथ ही अपने से कुछ हीन चैतन्य जाति के प्राणी को खा जाना भी भक्षण पत है। इसलिये मनुष्य जो करता है व भक्षण बात है आरम्भज या सहज घात नहीं ।
प्रश्न- जैसे जीवन निर्वाह के लिये वनस्पति के सिवाय दूसरा साधन न होने से वनस्पतिभक्षण क्षम्य है उसी प्रकार जहां के लिये पति इतनी मात्रा में नहीं है कि वहां के आदमी गुजर कर सकें तो उनके लिये मांस भक्षण क्षम्य क्यों न माना जाय !
उत्तर-- काफी वनस्पतियाळे देश की अपेक्षा वहां के क्षण में कम पाप है यह
शौक
निथित है क्योंकि नहीं है, विवशता है, परन्तु दृष्टि से
की
हार और मांसाहार में जो जमीन आसमान का अन्तर है वह न भुलाना चाहिये । ' चलते फिरते प्राणियों की अपेक्षा वनस्पति की इतनी कम है कि उसे नगण्य कहा जा सकता है' यह बात तो है ही साथ ही एक बात और है कि वनस्पति के पुरे की बहुत कम होती है। अन्न के मौसमी झाड़ तो सूखने पर ही काटे जाते हैं । स्थायी वृक्षों के फल फूल अलग होने के लिये ही होते हैं, उन्हें अलग न करो तो झाड़