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भगवती के अंग
आचार कांड [तीसरा अध्याय ]
[ भगवती के अंग ]
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जगत के सारे व्रतनियम यम ने आदि भगवती अहिंसा के अंग हैं इसी प्रकार सारे पाप अधर्म कुकार्य आदि पापिनी हिंसा के कार्य है । झूठ बोलना, चोरी करना, अपमान करना, माग्ना पीटना, वध करना आदि सभी हिंसाकार्य है जिसने भगवती की आराधना करली है वह पाप के भेद-प्रभेद समझे बिना निष्पाप जीवन बिता सकेगा परन्तु निष्पापता को रिक बनाने के लिये संयम और पाप के भेद-प्रभेद जानलेना जरूरी है। हिंसा पापिनी के मेदप्रभेद जानलेने से भगवती अहिंसा के मंदप्रभेद समझे जासकते है इसलिये पहिले हिंसा के या पाप के भेद बता दिये जाते हैं उसी के आधार से अहिंसा या संयम के भेद समझ लिये जायेंगे ।
हिंसा पापिनी की दो श्रेणियाँ हैं पाप और अनुपाप । ये श्रेणियाँ मन के विकार की दृष्टि से नहीं किन्तु उसके व्यावहारिक रूप की दृष्टि से हैं। हो सकता है कि अनुपाप पाप से बढ़जाय । परन्तु जिन पापों की पापता सरलता से समझ में आजाती है, मन्यसमाज के नियमों का भंग भी
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मालूम होता है, उन्हें पाप करते हैं पर जो अपने या दूसरों के दुःख का कारण तो हैं सामाजिक नियमों के ध्येय के नाशक भी हैं पर व्यक्तिगत अधिकार के भीतर हैं वे अनुपाप हैं, जैसे परिग्रह या पूँजीवाद | यह सामाजिक अर्थव्यवस्था के ध्येय को नष्ट करता है पर बाहर से सामाजिक नियम या कानून का भंग नहीं करता इसलिये यह अनुपा है । इसी प्रकार जो होना या अन्य इन्द्रियों का गुलाम होना भी अनुपाप है ।
हिंसा के भेद - पाप या हिंसा के मूल भेद तीन हैं । १ प्राणघात, २ अर्थघात, ३ । इन तीनों पापों से घात होता है इसलिये ये सब हिंसा पापिनी के भेद हैं । अर्थघात को चोरी कहते हैं, वन को झूट कहते हैं । विश्वासघात अर्थात में कारण है फिर भी उस का स्वतन्त्र स्थान ह । अर्थघात एक तरह का वास है और अमुक अंश में प्राणवात भी है फिर भी जीवन में उसका स्थान इतना महत्वपूर्ण है कि उस अलग बताने की जरूरत है ।
अनुपाप या उपपाप के चार भेद हैं
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