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भत्यामृत (आचार कांड)
विपय सुची पहिला अध्याय -भगवनी अहिंसा-पृ. २१२ से २२९
वर के दो पहछ । चाका लिंग ! अहिंसा की निषेधपरता । प्रवृत्ति निवृत्ति और उसकी आठ सूचना । प्रवृत्ति की ज़रूरत । परम स्वार्थी आदि सात उदार पद । त्रिविध प्रवृत्ति । प्रवृति के
दस भेट , निर्णय निकष : भगवती का मातृन्त्र ।
दुसरा अध्याय
-भगवती की मा ना-पृ. २३० से २८५ तक
साधना और आराधनः । ईश्वर और शतान । व्यवहार पंचक । साधना के अंग । मनोवृति के वामद । नेजाया, धारा लहरी.कि कालिना । अकषायता का रूप । प्रेम और मोह । माप विनिमय अमाप विनिमय । कन्याणी देवी की कथा । प्रेमी पिता । मोहिनी माता । हिमोजा की कथा। निगममानना और उनके कगार विविध दृष्टान्त । अक्रोध निछलता । जीवन साधना और उसकी उदाण कराय। लोकमभको कामपा कुछ सूचनाएं। तीसरा अध्याय -भगवती के अंग-पृ. २८६ से ३४९ तक
हिमा के भेद । संयम उपसंयम के भेद । प्राणघात । प्राणघात के तीन भेद । प्राण के चार भेद । प्रागधात के तेरह भेद । प्राणरक्षण व्रत | सात तरह का भघात । ईमान या अचौर्यव्रत, प्राणघातकी तेरह भेदों में इसका विवेचन । धनचौर, नाम चोर, उपकार चोर, उपयोग चोर । चोरी क टेगों मे-छन, नज़र, ठग, उद्घाटक, बलाद, घातक छः तरह के चोर।छन्न चोर के विविध भेद । सल्यबन । अभिधा लक्षण व्यजना । वाक्यों के नवभेद । पांच भाषा द्वार-शब्द स्वर चय अकृमि कृना अतथ्य के बाहभदा तथ्य के छः भेद । कथानकों के दस भेद ।
बौथा अध्याय
-भगवती के उपांग-पृ. ३५० से ३८३
चार उपग । सद्भोग । तीन मुख्य दुर्भोग-व्यभिचार, मांसभक्षण, मद्यपान, । व्यभिचार की चार श्रेणियाँ । सदर्जन । दुरर्जन के छः भेद पाप जीविका, छलजीविका, जुवा, लाटरी का विचार, सहा, भिक्षा अधिक व्या निरनिमह निरतिभोग।