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________________ भगवती की साधना प्रश्न--शहद में मधुमक्खियों के धन का छल से या बल से अपहरण ही किया जाता है यह तो भक्षण ही कहलाया इसलिये शहद का उपयोग भी हिंसा मानना चाहिये। जो लोग मधुमक्खी पालते हैं वे भी छलसे अपहरण करते हैं । उत्तर - हिंसा तो यह ही, परन्तु है बहुत थोड़ी मात्रा में शहद मक्खियों का ऐयाशी भोजन है और मनुष्य की दवा है। मधुमक्खी यों तो अपना पेट भर ही लेती हैं संचित मधु के अभाव में वह भूखों नहीं मरती इसलिये हिंसा कम ही रह जाती है फिर औषध के लिये जब मधु का उपयोग किया जाता है तब विश्वसुखवर्धन की दृष्टि से दुखवर्धकता बहुत कम रह जाती है । चैतन्य की दृष्टि से मधुमक्खी का स्थान मनुष्य या पशु के बराबर नहीं है । 1 यों तो प्रकृतिने भक्ष्यभक्षकमय संसार बना रक्खा है । मनुष्य जिस दिन से पैदा होता है उसी दिन से हिंसा आदि का विचार किये बिना भक्षण शुरु कर देता है । वायुमण्डल जीवों का पिंड है एक श्वास में ही लाखों सूक्ष्म प्राणी अपना जीवन खोदेते हैं परन्तु इस भक्षण को रोकना मनुष्य के वश के बाहर है इसमें छल तो है ही नहीं बल का भी प्रयोग नहीं है उसका सिर्फ उपयोग है । भक्षण में छलवल के प्रयोग का विचार करना चाहिये उसके प्राकृतिक उपयोग का नहीं, इसलिये यह प्राकृतिक संहार क्षन्तव्य है । शाकभाजी खाने में भी हिंसा होती है जीवन निर्वाह के लिये वह भक्षण भी अनिवार्य है इसलिये क्षन्तव्य है । इस भक्ष्यभक्षकमय संहार में मनुष्य इतना ही कर सकता है कि वह अधिक चैतन्य वाले प्राणियों को कम से कम दुःख दे और वनस्पति आदि हीन चैतन्यवालों [ २३४ को अनावश्यक कष्ट न दे और चैतन्य के माप से विश्वमुखवर्धन की तराजू को सम्हालता रहे । इस दृष्टि से शहद में अल्प मात्रा में ही हिंसा रह जाती है । तक्षण - विश्वहित की पर्वाह किये बिना प्राणों का नाश करना, प्राणी की शक्ति को नष्ट करना, रोकना, या उसके चित्त को क्लेशित करना तक्षण है । जैसे अहंकारवश किसी को मार डालना गाली देना आदि। यह सब हिंसा पापिनी का कार्य है । प्रश्न- भक्षण और तक्षण में अन्तर क्या है ! उत्तर- भक्षण में दूसरे की शक्ति आदि का उपयोग करने की मुख्यता है तक्षण में इस की मुख्यता नहीं है किसी दूसरे कार्य के लिये सिर्फ ने एक आदमी को इसलिये मार डाला कि उसने दूसरे की बर्बादी की जाती है। जैसे किसी डाकू डाका डालते समय डांकू को पहिचान लिया था । डाकू को डर था कि वह गवाह बनकर पकड़ा देगा । यहाँ डाकू को उस आदमी का उपयोग नहीं करना था सिर्फ अन्याय्य आत्मरक्षा के लिये उसका नाश करना था। प्रश्न- म. राम ने सीता के लिये रात्रण का वध किया यह भी लक्षण कहलाया ? क्या यह हिंसा पापिनी का कार्य है ! उत्तर- तक्षण तो यह जरूर है पर यह तक्षण हिंसा पापिनी का कार्य नहीं है। क्योंकि यह विश्वहित के विरुद्ध नहीं है, बल्कि विश्वहित के लिये जरूरी है। प्रश्न - आत्महत्या बड़ा पाप माना जाता है परन्तु उसमें न तो किसी का लक्षण है न किसी का तक्षण, तब वह पाप क्यों !
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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