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सत्यामृत
अंग कहाजाता है। सन्तान की सृष्टि और इसके स्थान पर प्रेम या आचार शब्द होता तो. वृद्धि में माता पिता का जो स्थान है वही कल्याण उनका लिंग बदलना पड़ता क्योंकि ईश्वर के की सृष्टि और वृद्धि में आचार और विचार का जिस अंश के ये वाचक हैं उसका सम्बन्ध स्थान है। इसलिये अहिंसा माता है। अगर नारीत्व से है। . अहिंसा शब्द स्त्रीलिंग न होता तो उसे स्त्रीलिंग अहिंमा में मातृत्व का आरोप उसके शब्दबनाना आवश्यक हो जाता क्योंकि वह ईश्वर के उसी लिंग के कारण नहीं किन्तु ईश्वर के नारीत्व अंश अंश का वाचक है जिसे नारीत्व कहा जा सकता है। रूप होने के कारण किया गया है ।
शब्दों में जो लिंग भेद होता है वह किसी यह भगवती अहिंसा है, जो जगत के सारे न किसी प्रकार के अर्थभेद का सूचक है। कल्याणों की जननी है। अहिंसा सत्य अचौर्य अपजब शब्द का लिंग अर्थ की लैंगिक भावना के रिग्रह व्रत जिसके अंग हैं, इनके साधक अनेक अनुरूप नहीं होता तब हमें रूपक आदि के उपनियम जिसके उपांग हैं, अकषायता निर्वैरता द्वारा शब्द का लिंग बदलना पड़ता हे या काला- कर्मयोग आदि जिसके प्राण हैं, समस्त धर्म मत न्तर में जनता स्वयं उसका लिंग बदल लेती है। या मजहब जिसके वस्त्र हैं, देश काल से सम्बन्ध विजय शब्द मूल में पुल्लिंग होने पर भी युद्ध में रखनेवाले बाह्याचार जिसके वस्त्र के रंग हैं, उसका स्थान जब स्वयम्वर की कन्या के समान कल्याण के लिये उपयोगी अनेक गुण जिसके होगया तब विजय श्री आदि रूपों से उसका स्त्री आभषण हैं; वही जगदम्बा भगवती अहिंसा है लिंग बना दिया गया और हिन्दीवालाने तो जिसकी उपासना से सब धर्मों की उपासना हो उसे स्वतन्त्ररूप में ही स्त्रीलिंग मान लिया। जाती है और जिसके बिना कोई क्रिया धर्म नहीं भाग्य से अहिंसा शब्द स्त्रीलिंग है अगर कही जा सकती।
सारे नियम यम अंग तेरे वस्त्र तेरे धर्म हैं । ये वस्त्र के सब रंग दैशिक और कालिक कर्म हैं । गुण गण सकल भूषण बने चैतन्यमयि हे भगवती। है विश्वप्रेममयी अभय दे अमर ज्योति महासती ॥