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________________ विशेष साधना-तप १ सद्दष्टि भावना व्यक्त करना, जितने अंश में नहीं चल जिस मनुष्य ने स्वपर कल्याण रूप धर्म के पा रहे हैं उतने अंश में खेद प्रगट करना भक्ति है । मार्ग को, समझ लिया है, भगवान सत्य और भग- भक्ति एकान्त में भी हो सकती है और वती अहिंसा में जिसे श्रद्धा है जो सब धर्मों में विवेक- जिस किसी समय में भी हो सकती है। फिर भी पूर्ण समभाव और सब मनुष्यों की एक जाति के इस अनियमितता से प्रमाद आजाता है इसलिये सिद्धान्त को मानता है, जो देशकाल की परि- नियमित समय पर मिलजुलकर भक्ति की जाय स्थिति के अनुसार परिवर्तन या सुधार का समर्थक यही उचित है । हां, कहीं कोई साथी न मिले तो है पर जातिसमभाव और सुधार को क्रियात्मक न सही तब नियत समय पर अकेले भी की जाय रूप देने में असमर्थता अनुभव करता है, उसकी तो कोई हानि नहीं है । साधारणतः सुबह शाम दो इच्छा यही है कि मैं समर्थ बनें, इसलिये मौका बार भक्ति करना उचित है । इसके सिवाय जब आने पर इन बातों को क्रियात्मक रूप भी देता इच्छा हो जब दिल उखड़ पड़े, किसी कारण से है, जो लोग इसे क्रियात्मक रूप देते हैं उनकी चित्त में क्षोम हो और उसे शान्त करना हो प्रशंसा करता है उन्हें भाग्यशाली समझता है, तभी भक्ति करना चाहिये । भाक्ति में नल्लनि होने वह मनुष्य सदृष्टि है, कल्याणपथ की प्रथम पर मनुष्य संसार से ऊपर उठ जाता है, दुनिया के श्रेणी का है। दुःख भूल जाता है, उसका वैरभाव शान्त हो जाता है, तीन आवश्यक दुनिया के दुखी जीवों पर प्रेम उमड़ने लगता है गुणियों में आदर भाव आजाता है, एक तरह से । यद्यपि वह संयमी और व्रती नहीं हो पाया वह भगवान के दौर में पहुँच जाता है, इसलिये है धर्मजातिममभाव और समाजसुधार को भी भाक्त धर्म का मूल और आवश्यक कर्तव्य है। पूरी तरह नहीं अपना पाया है सिर्फ इन बातों में तीन वन्दन ।' विश्वास कर पाया है पर उसका यह विश्वास जब मन में सच्ची भक्ति आजाती है तब वह दिखावटी नहीं है सच्चा है, इसके लिये ये तीन . ठीक रास्ते से प्रगट होती ही है, फिर भी भाक्ति जरूरी काम अवश्य करता है । वे तीन जरूरी कोमची और परी बनाने के लिये तीन प्रकार काम अर्थात् आवश्यक है १ भाक्त २ स्वाध्याय के क्दन करना चाहिये -१ सत्यवन्दन २ ३ अर्पण। किसी भी भलाई के मार्ग में अगर सत्यसेवकन्दन ३ सत्यसमाज वन्दन । वास्तव में कोई मनष्य शामिल होता है और उसके लिये वह जी का भवतीति भी हो विशेष कुछ नहीं कर पाता तो भी कम से कम व्यवहार में लाने के लिये इन भेदों की जरूरत है। हो उसके लिये ये तीन कार्य तो आवश्यक ही हैं। सत्यवन्दन-भगवान सत्य भगवती अहिंसा १ भक्ति-मन से वचन और शारीरिक के रूप में ईश्वर का वन्दम अथवा भगवान सत्य क्रिया से कल्याण के पथ में, पथ--प्रदर्शकों में भगवती अहिंसा का ईश्वर के रूप में वन्दन । इस अटूट विश्वास प्रगट करना, उनके गुण गाना, वन्दन में ईश्वर गाड खुदा अल्लाह अहुरमग्द उस पप पर चलने की और आगे बढ़ने की शिवशक्ति विष्णु ब्रह्म आदि शब्दों का प्रयोग
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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