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सत्यामत
विकास और चोरी होने से पाप हो जाता आती है। विधुर जैसे एक दिन परपुरुष है
लेकिन विवाह के बाद वही स्वपुरुष हो जाता है प्रश्न... ही पापी है या खुद और व्यभिचार का दृषण नहीं लगता उसी प्रकार अविवाहित होने पर विवाहिन के साथ कामसेवन विधवा भी एक दर-की है लेकिन उसके साथ करनेवाला भी पापी है।
विवाह करने के बाद उसमें परस्त्रीपन नहीं रहता। उत्तर - दोनों विवाहित है तो दोनों पापी
विधवा को परखी न कहिये क्योंकि है ही, पर अगर दो में से एक विवादित है तो
जब पर ही नहीं तब परस्त्री कहाँ रही ? परन्तु भी दोन पापी है कयाकि दूसरे के सहचर के जो स्त्री तलाक दे चुकी है वह तो परस्त्री ही है साथ कामसेवन करना भी दूसरे के साथ विश्वास
उसका पति जिन्दा है तब उस के साथ विवाह धात या चोरी करना है। हां, अगर किसी को
करनेवाला व्यभिचारी कहाजायगा या नहीं? दूसरे के विवाहित होने का पता न हो तो वह
उत्तर- तलाक अच्छी चीज नहीं है तलाक पापी नहीं कहा जायगा।
कम से कम हो या बिलकुल न हो यह बहुत प्रश्न-वित्रा के साथ विवाह कर लिया
अच्छा है । पर अगर हो जाय तो उस के साथ जाय तो इसे उपपाप कहा जाय या न कहा
शादी करने वाला व्यभिचारी नहीं है । क्योंकि जाय!
एक दिन जो पति था वह तो अवश्य जिन्दा है उत्तर- भिक माह तो पाप है ही नहीं,
पर उस स्त्री की अपेक्षा उसका पतित्व जिन्दा साथ ही उपाप भी नहीं है। किसी का विवाह नहीं है। इसलिये वह स्त्री अब बिपत्रकेस्मान दुआ और उमरिया ! साथी मर चुका हे विवाह योग्य है। यही बात पुरुष के लिये है। न उस रिमणि हि के लिये वैसी ही हो
विश्वाविवाह आदि प्रश्नी पर जो विचार जाती है जैसी उसी उम्र के कुमार या कुमारी की, मकि क्य-जितका शिकार हो रहा है
करना पड़ता है उसका कारण यह है कि नर कुमारी हो या विधया उनमें होना ।
और नारी में अनारक या अन्यायपूर्ण विषमता
आगई है। एक युग ऐसा निकल गया है जब में इसमें विश्वासघात है न चोरी।
नारी सम्पचि के समान समझी जाती थी और प्रश्न- क्या विधवा के साथ संबंध करन में ऐसे भी दार्दिन गुजर चुके हैं जबकि पति के ज्यभिचार का दोष नहीं लगता ! यदि लगता है
मरने पर उस की पनियाँ भी उस की लाश के ता बन्न -वित्र : में वह दोष कहां चला जायगा! साथ स्वाहा कर दी जाती थीं। वे क्रूर दिन तो
उत्तर- बिना विवाह के तो कुमारी के निकल गये पर उनका अतर आज भी बना साथ संबंध करने में भी व्यभिचार का दोष है. हुआ है । नानाननाव जैना चाहिये वैसा पर विवाह के द्वारा जैसे कुमारीपन वसीमन अभी नहीं आपाया है । इसलिये विधुर का विवाह बदल जाता है. उभी प्रकार विवाह के दामन ई विधवः के विवाह में नई नई विषयापन भी स्वसीपन में बदल जाता । पर आपत्तियः गबई की जानी हैं। मामाजिक सुव्यपनका विचार करने से भी यही बात ध्यान में स्था या नर और नारी दोनों के हित की दृष्टि