SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानके परदे असंख्य यज्ञोंके फल और देवताओंके प्रसाद स्वरूप अन्तमें महाराजकी मनोकामना पूरी हुई। उन्हें एक और पुत्र रत्नकी प्राप्ति हो गयी | ज्योति - षियोंने कहा कि यह राज - पुत्र संसारकी सम्पत्तियोंका ही नहीं, सम्पूर्ण मानव प्रजाके हृदयोंका भी स्वामी और समर्थ शासक होगा । महाराजकी चिन्ता अपने वंश और राज्यके संचालनकी नहीं प्रत्युत एक ऐसे आत्मजके अभावकी थी, जो प्रजाजनका अचूक शासक बनकर उसकी भौतिक सुरक्षा के साथ-साथ उसके सर्वतोमुखी विकासका भी परिवहन कर सके । छह पुत्र उनके पहलेसे विद्यमान थे और उनमें सबसे बड़ेका शासनसामर्थ्य अद्वितीय आँका जाता था— उसकी धनुषकी टंकारसे देशदेशान्तरके शूर सेनानी काँपते थे । किन्तु महाराजको उससे संतोष नहीं था । महाराजका यह सातवाँ पुत्र सात वर्षका होते ही वनोंमें तपस्याके लिए चला गया । सहस्र वर्षकी सर्वनिष्ठ तपस्या के पश्चात् उसकी साधना पूरी हुई । ब्रह्माजीने प्रकट होकर उसे सृष्टिके गुह्यतम बाँध एवं ज्ञानका वरदान दिया । राजकुमार अपने राजनगरको लौटा । उसकी वाणीसे निस्सृत ज्ञानगरिमाने देश-देशान्तरके विद्वत्-वर्गको स्तब्ध कर दिया । भीड़ें उसके चरण छूनेके लिए उमड़ने लगीं। फिर भी प्रजाजनका बहुत बड़ा वर्ग ऐसा था जो उस ऊँचे ज्ञानका स्वाद नहीं ले सकता था और राजकुमारके ज्ञानोपदेशोंमें उसके लिए कोई रस नहीं था ।
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy