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________________ गिद्ध और मक्खी ५६ बुद्धि बड़ी होती है और वह मेरे पास तुमसे कुछ अधिक है।' मक्खोने उत्तर दिया । अगली सुबह गिद्धोंका वह परिवार उस वनको ओर उड़ चला। एक पहाड़ी नदीके किनारे वह हाथी मरा पड़ा था। उसके पास ही इधरउधरको चौड़ी चट्टानोंपर सभी गिद्ध बैठ गये । 'मेरे मित्रो !' गिद्धोंने, अचानक सुनकर हाथोकी ओर दृष्टि फेरी तो देखा, उसकी सूंडके ऊपर बैठी हुई वही मक्खी कह रही थी-'मेरे मित्रो, आपलोगोंके यहाँ व्यवस्थित होनेसे कुछ ही पहले मै यहाँ पहुँची हूँ। यह तीन गति मैने मैत्री-सहयोगकी साधना द्वारा ही पाई है। इस समयकी मेरी सबसे बड़ी सेवा यही है कि आप मेरा आदेश मानकर इस हाथीको न खायें और आस-पास किसी दूसरे भोजनकी खोज कर लें। यह हाथी किसी अत्यन्त तीन विषको खाकर मरा है और इसका मांस खानेसे आप सबके प्राण संकटमें पड़ जायेंगे। स्वस्थ और विषाक्त मांसकी जितनी परख मुझे है आपको नहीं हो सकती; इसलिए आपको मेरा यह परामर्श मानना ही चाहिए।' गिद्धोंको मक्खीके इस उपवास-कारक परामर्शसे बड़ा क्षोभ हुआ। उसके प्रथम विरोधी गिद्धने ही कहा 'इस मक्खीके हौसले बहुत बढ़ते जा रहे हैं। कल इसने हमारा इतना बड़ा अपमान किया और आज अपनी कुटिलतासे हमें भोजनसे भी वंचित करना चाहती है।' ___'मेरी कुटिलता या सरलताका परीक्षण कठिन नहीं है । तुम्हें विश्वास न हो तो सरदारको अनुमतिसे तुम इस मांसका स्वाद लेकर स्वयं देख सकते हो।' मक्खीने उससे कहा । सरदार और दूसरे गिद्धोंको ओरसे किसी विरोधका संकेत न पाकर उस गिद्धने हाथीको सूंडपर अपनी चोंच मारी और थोड़ी ही देरमें चक्कर खाकर धरतीपर गिर पड़ा।
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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