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गिद्ध और मक्खी किसी वनमें गिद्धोंका एक बड़ा परिवार रहता था ।
हर तीसरे वर्ष ये अपने समूहमे-से किसी एकको अपना सरदार चुन लेते थे और अपने नेतृत्व कालमें वही उनकी भोज-यात्राओंका निर्देशक
और अगुआ होता था। नये भोजनका पहला ग्रास लेनेका अधिकार उसीका होता था और उसीके आदेशानुसार गिद्धोंको अलग-अलग टोलियोंमे बँटकर अपनी बारीपर भोज्य-शवका आहार करना और समयोपरान्त वहाँसे हटकर दूसरी टोलीको भोजनका अवसर देना पड़ता था।
एक बार उस वनमे नये गिद्धराजके राज्याभिषेकका समारोह हो रहा था। सभी गिद्ध एक बड़े टीलेपर अपने नये राजाको घेरकर वृत्ताकारमें बैठे हुए थे। उनमेसे कुछ प्रमुखजन उसके प्रति बारी-बारी प्रशस्ति और बधाईके शब्द प्रस्तुत कर रहे थे।
एक मक्खी भी वहाँ उनके बीच उपस्थित थी। अवसर पाकर वह सरदारके समीप आ बैठी और गिद्ध-सभाको सम्बोधित कर कहने लगी
_ 'जिसे आपलोगोंने अपना सरदार निर्वाचित किया है वह बहुत दिनोंसे मेरा परम मित्र है। मुझे प्रसन्नता है कि आपने अपने अत्यन्त बुद्धिमान और योग्यतम व्यक्तिको ही अपना नायक निर्वाचित किया है। इस निर्वाचनके लिए मैं अपने मित्रको बधाई और आपको हार्दिक धन्यवाद देती हूँ और आपको विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि मेरे मित्रके नाते आप सभीको मेरी बड़ीसे-बड़ी सेवाएँ सदैव प्राप्त रहेगी।
मक्खीने अपने संक्षिप्त भाषणमें बताया कि कुछ वर्ष पहले एक समय मनुष्योंके एक गांवमें बासे भातके ढेरपर बैठी वह अपना भोजन कर रही थी। वहींपर यह गिद्ध आ पहुँचा। गिद्धने उसे अपनी चोंचसे कोई हानि