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________________ ३२ मेरे कथागुरुका कहना है जगह नहीं थी । रोटियोंके अति संचय, संग्रह और अपहरणका क्रम भी उस दिनसे घटना प्रारम्भ होकर शीघ्र ही समाप्त हो गया । X X X मेरे कथागुरुका कहना है कि आज फिर उसी प्रकारका एक भूखा गाँव दुनियाके किसी कोनेमें बसकर विस्तार पकड़ता जा रहा है और उसके उपचार के लिए रोटियोंकी नहीं, रोटियाँ जीमनेकी एक पंगत बिठानेकी आवश्यकता सर्वप्रथम है । कथागुरुका संकेत है कि 'रोटी' और 'रोटीकी पंगत' के बीच के न दीखते- से, किन्तु महान् अन्तरमें इस भूखे गाँवकी समस्याका रहस्यपूर्ण हल समाया हुआ है । पूर्व संचित या नवप्राप्त वस्तुका तुरन्त उपयोग करनेका अभ्यास जबतक लोगोंको न हो जायगा तबतक अतृप्ति और अभावसे उनका पीछा नहीं छूट सकेगा ।
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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