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बड़ी खोज एक राजकुमारी अपनी कुछ सहेलियों और परिचारिकाओंके साथ पर्यटनको निकली। उसके रात्रिकालीन पड़ाव कभी दीप-मालाओंसे जगमगाते भव्य भवनोंवाले नगरोंके छोरमें पड़ते, कभी छोटे ग्रामोंके पथिकालयोमें, तो कभी-कभी निर्जन, घने वनके किसी विशाल वटके नीचे भी पड़ जाते थे। ___ एक रात उनका पड़ाव ऐसे ही एक वनमें पड़ा। अगले दिन उठकर जब उस दलने आगे प्रस्थानकी तैयारी की तो पाया कि राजकुमारीका बहुमूल्य मोतियोंका हार उसके गलेसे ही बिछुड़कर कहीं खो गया था।
हारकी खोज प्रारम्भ हुई। निःसन्देह उस वनमें आस-पासकी भूमि पर ही कहीं गिरकर वह खोया था। जबतक हार न मिले, आगेकी यात्रा स्थगित ही थी।
दुपहरी चढ़ आई, किन्तु हार न मिला। राजकुमारी एक ओर गहरी चिन्तामें मग्न-सी बैठी थी। अन्तमें उसने सभी सहेलियों-परिचारिकाओं को बुलाकर एकत्र किया और कहा-'तुम सब बड़ी मूर्ख हो, जो उस निर्जीव मोतियोंके हारकी खोजमें इतनी अन्धी हो रही हो। उन मोतियोंसे अधिक मूल्यवान् क्या कोई दूसरी वस्तु तुम्हे यहाँ नहीं दिखाई दी ? तुम्हारी
आँखें बन्द नहीं हैं नो तुम सभीने उसे देखा है। जाओ, उस निष्प्राण हारको चिन्ता छोड़कर संसारके सर्वाधिक मूल्यवान् उस रत्नको ही तुम मेरे लिए खोज लाओ।'
राजकुमारीके इस आदेशको सुनकर सभी अनुचारिकाएँ हत-बुद्धि रह गईं। वास्तवमें उन मोतियोंसे अधिक मूल्यवान् कोई रत्न उन्होंने उस वनमें नहीं देखा था। राजकुमारीका वह हार ही संसारके सर्वाधिक मूल्यवान् मोतियोंका माना जाता था।