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कीलित और गतिशील
दीक्षान्त विसर्जनके समय महास्थविरने भिक्षुओंके उस वर्गको उपदेश दिया---'निकटतम गृहस्थसे उसकी सुविधानुसार जो कुछ उपलब्ध हो उसीसे अपनी उदर-पूर्ति करना। भिक्षाके लिए दूराटन लोक-सुविधाके प्रतिकूल एवं अश्रेयस्कर होगा।'
लोक-मंगलकी साधनाके निमित्त सभी भिक्षु व्यवस्थानुसार वितरित होकर अलग-अलग पुरियोंमें बस गये। महास्थविरकी प्रेरणा थी, समृद्ध नागरिकोंने यत्र-तत्र उनके निवासके लिए पर्ण-विहार अपने भवनोंके समीप बनवा दिये। ____ लोक-चेतनाके उन्नायक ये भिक्षु गृहस्थोंके सम्मान्य थे। उनका भोजन-सत्कार उनके लिए अति सुगम एवं प्रिय था। दैनिक अन्नदानके बदले भिक्षुसे दैनिक उपदेश लाभ उनके लिए चिर स्वीकार्य था। सभी भिक्षुओंके नाते इस प्रकार अपने समीपके एक या स्वल्पाधिक गृहोंसे जुड़ गये। महास्थविरका आदेश भी ऐसा ही कुछ था और उसीका उन्होंने पालन किया था।
जिस प्रदेशमें यह भिक्षु-वर्ग वितरित था उसमें महास्थविरका पदार्पण हुआ। सभी भिक्ष मध्यवर्ती नगरके मठमें उनके दर्शनोंके निमित्त एकत्र हुए। केवल एक भिक्षु नहीं आया। सूचना थी कि उसने एक पुरीमें अपने निवासके हेतु निर्मित कुटीरमें एक रात आग लगा दी थी और दूराटनके लिए निकल गया था।
कुछ भिक्षुओंने उस अनुपस्थित भिक्षुकी भी महास्थविरके सम्मुख चर्चा की। उन्होंने अपने इस वियुक्त बन्धुके प्रति दया सहानुभूति प्रकट करते हुए बताया कि वह महास्थविरके आदेशका पालन करनेमें समर्थ नहीं हुआ।