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छट्टा अध्याय
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अजुन
छठा अध्याय ...१४२२.
[रोला] माधव मेरा जाति-मोह मर गया आज है । मानवता का आज मनोहर सजा साज है ।। अब न जाति का पक्षपात मुझमें आवेगा । वंश-मोह कुल-मोह दूर ही रह जावेगा ॥१॥ जो न्यायी है और जगत को है सुखदाई । प्रेममूर्ति निष्पक्ष वही है मेरा भाई ।। जन्म भेद से भेदभाव होना न चाहिये । सर्व-जाति समभाव कभी खोना न चाहिये ॥२॥ किन्तु यहां भी मुझे हो रहा है यह संशय । नरनारी का भेद करेगा समता का क्षय ॥ नरनारी की प्रकृति और आकृति विभिन्न है। इसीलिये सम-भाव-सूत्र हो रहा छिन्न है ॥३॥ नर है पौरुष-धाम सुधी कर्मठ बलशाली । दृढ़मन दृढ़तन निडर साहसी गुणगणमाली ॥ .