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कृष्ण-गीता
गुण से ही मिलता साचा पद ।
उच्च नीच का है झूठा मद ॥ मदमय मन मत कर, विष हरकर, दे यह विष-घट फोड़ ।
निरर्थक भेदभाव दे छोड़ ॥३१॥ ___ गीत १६
जातियाँ हैं सब कर्म-प्रधान । जैसा कर्म करे जो मानव वैसा उसका मान ।
जातियाँ हैं सब कर्म-प्रधान ॥३२॥ ब्राह्मण कुलमें पैदा होकर दिया न जगको ज्ञान । विद्या में जीवन न दिया तो है वह शद्र--समान ||
जातियाँ ह सब कर्म-प्रधान ॥३३॥ अगर शूद्र कुल में पैदा हो लेकिन हो विद्वान । समझो विप्र, विप्रताकी । है सद्विद्या पहचान ॥
जातियाँ हैं सब कर्म प्रधान ॥३४॥ जन्म निमित्तरूप है केवल हे साधन सामान । साधन पाये कार्य न पाया व्यर्थ नामका गान ।।
जातियाँ हैं सब कर्म-प्रधान ॥३५॥ कार्य-सिद्धि होगई मिला यदि गुणगण का सन्मान । कारण पूरे हों कि अधूरे फिर क्या खींचातान ॥
जातियाँ हैं सब कर्म-प्रधान ॥३६॥ सामाजिक सामयिक भेद ये सुविधा के सामान । सामञ्जस्य यहां जैसे हो कर वैसे आदान ॥
• जातियाँ हैं सब कर्म--प्रधान ॥३७||