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कृष्ण-गीता
चौथा अध्याय
अर्जुन--
स्थिति-प्रज्ञ होऊं किस तरह योगेश समझाओ मुझे ।
आगे बढूँ बोलो किधर सत्पंथ दिखलाओ मुझे ॥ स्थिति-प्रज्ञ योगी के कहा क्या चिह्न क्या जीवन कथा ?
कर दो कृपाकर दूर मेरे मूढ़ मानसकी व्यथा ॥ १ ॥ श्रीकृष्ण- स्थितिप्रज्ञ का रूप जो माँ अहिंसा का दुलारा बन्धु सब संसार का । जो सत्य प्रभका पुत्र है योगी सदा है प्यार का ।। जिसकी न कोई जाति है जिसकी न कोई पाँति है । जिसका न कोई ज्ञाति है जो विश्वका हर भाँति है ॥ २ ॥
संसार भरके सब मनुज हैं जाति-भाई से जिसे । हैं जाति नामक भेद खंदक और खाई से जिसे ।। जिसको न कुलका पक्ष है सब को बराबर मानता । कोई रहे, यदि हो सदाचारी कुटुम्बी जानता ॥ ३ ॥