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तीमरा अध्याय
[ १५ दिग्वता है सौन्दर्य अपार ।
भाई, ममन्वयी संसार ॥८॥ युद्ध और समभाव अनलजल, जीवन का है मेल । है विरोध का पूर्ण समन्वय, जगका सारा ग्वल ॥
तब ही बहती जीवन --धार । भाई, ममन्वयी संमार ॥९॥
गीत ७ कटिन कर्तव्य हे अर्जुन, कठिन सत्पंथ पाना है । विराधों में भरी दुनिया समन्वय कर दिखाना है ॥ १० ॥
अनल की ज्योति है बिजली, चमकती जो कि बादल मे ।
बनाया नीर के घर को, अनल ने आशियाना है ॥ ११ ॥ किसी के गौर मुखड़े पर, मुहाते बाल है काल । सुहाता नील अँखियाँ है, सुहाता तिल निशाना है ॥ १२ ॥
प्रकृति के नील अङ्गण मे, सुहाता चन्द्रमा कैमा ।
विविधता के समन्वय मे, खुदाई का खजाना है ॥ १३ ॥ चमन में भी सदा दिग्वता, विरोधो का समन्वय ही। कही है काटना डाली, कही पौधे लगाना है ॥ १४ ॥
अनुग्रह और निग्रह कर, मगर समभाव रग्ब मनमे ।
चमन का बागवां वन तू, चमन तुझको बनाना है ॥ १५ ॥ अर्जन-
गीत ८ विक्षोभ रहे मन में न ज़रा, सब काम करूं बोलो की ? मनमे थोड़ा भी वैर न हो फिर, प्राण हरूं वाली कैस ॥१६॥