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सत् शिव सुन्दर का न रूप पहचाना तुमने । तुम लोगों में अगर समझदारी यह आती, नरनारी में यदि समानता आने पाती। तो अनर्थ की परम्परा कैसे दिखलाती, क्यों देवी द्रौपदी दाव पर रक्खी जाती ?
नरनारी वैषम्य वृक्ष है फलने आया ।
उसने कैसा आज महाभारत मचवाया ॥ इस तरह कृष्ण-गीता में बहुत से अनावश्यक विषय हटा कर आवश्यक जोड़ दिये गये हैं । अधिकांश विषयों का वर्णन इस समय की उपयोगिता के अनुसार किया गया है साथ ही उम अवसर के लिये भी वे अनुपयुक्त नहीं होने पाये हैं । भगवान सत्य के विराट् दर्शन हो जाने के बाद किसी को कोई शंका न रहना चाहिये इसीलिये इस गीता में विराट् दर्शन अंत में कराया गया है ।
यह कहा जा सकता है कि एक ऐतिहासिक वार्तालाप को किसी को मनमाने ढंगसे बदलने का क्या अधिकार है ! पर इसका उत्तर यही है कि श्रीकृष्ण का वह सन्देश सिर्फ इतिहास नहीं है न अपने ऐतिहासिक रूप में वह सुरक्षित है, वह धर्मशास्त्र है, कर्तव्य पथका ऐसा निर्देश है जिस में काफी स्थायी तत्त्व है। उस सन्देश के प्राण स्वरूप कर्मयोग को देशकाल के अनुसार भापा, भाव, युक्ति शैली आदि से सजाना अनुचित नहीं है । महाभारतकार ने अपने समय के लिये यही किया और यहाँ भी आज के युग के अनुसार यही किया गया है जो श्रेयस्कर है ।