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कृष्ण-गीता गुणदेव विराज यहाँ सभी के मनमें । जो करें उन्हें प्रत्यक्ष वचन तन जन में । गुण-देव-भक्त वे देव बने नरतन में ।
नर से नारायण बने इसी जीवन में ॥ उन नरदेवों की अद्भुत पुण्य कमाई । सब देवों का दर्बार भरा है भाई ॥६॥
वे सत्य अहिंसा--पुत्र जगत के भ्राता । जो थे जीवनभर रहे दुखित-जन-त्राता ॥ दुख सहे स्वयं पर जगको दी सुख साता ।
थे तो मनुष्य पर जगके भाग्य-विधाता ॥ वे पार हुए दुनिया ने महिमा गाई । सब देवों का दौर भरा है भाई ॥६५॥
जिसने गुण-देवों का शुभ दर्शन पाया । जिसने नर--देवों में समभाव दिखाया । बन सत्य-अहिंसा-भक्त जगत में आया ।
जिसने सेवा कर घर घर रस बरसाया ॥ है धन्य उसी का पिता उसी की माई । सब देवों का दर्वार भरा है भाई ॥६६॥
नरदेवों के वचन या जीवन का इतिहास । सत्पथ-दर्शक शास्त्र है सत्येश्वर का दास ॥६७॥ देशकाल को देखकर व्यक्ति-शक्ति अनुसार । सब शास्त्रों का सार ले जो हो तारणहार ॥६८॥