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कृष्ण-गीता मिली तर्क में कल्पना सत्य हुआ प्रच्छन्न । सत्य जहां प्रच्छन्न है जीवन वहां विपन्न ॥५०॥ तर्कशास्त्र ले हाथ में कर असत्य को चूर्ण । जो जो सत्य अँचे वहां रख तू श्रद्धा पूर्ण ॥५१॥ देव शास्त्र गुरु जाँचले कर न अन्ध-विश्वास । फिर अविचल श्रद्धालु बन बन जा उनका दास ॥५२॥ श्रद्धा और विवेक से ऐसा नाता जोड़ ।
सत्यामृत बहता रहे हृदय निचोड़ निचोड़ ॥५३॥ अर्जन
देव शास्त्र गुरु हैं बहुत दूँ किन किन को मान । कैसे पहिचानूं उन्हें क्या उनकी पहिचान ॥५४॥ देव कहां है विश्व में कहां देव का धाम ।
गुरु रहते किस वेष में उनको करूं प्रणाम ॥५५॥ श्रीकृष्ण
जीवन के आदर्श जो समझ उन्हें तू देव । झुक जाता उनकी तरफ़ सब का मन स्वयमेव ॥५६॥ पूर्णदेव गुण-देव हैं व्यक्ति देव हैं अंश । व्यक्तिदेव नरदेव हैं करें पाप का भ्रंश ॥५॥ नित्यदेव गुणदेव हैं पाकर उनका सार । बने महात्मा जगत में वे नर-देव अपार ॥५८॥ सभी जगह गुणदेव हैं घटपट में है वास । देख चुका गुणदेव जो हटा उसी का त्रास ॥५९॥