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कृष्ण-गीता हमने ही तब धोखा खाया । पर इम सीधी मरल बात का है किस किस को ध्यान ।
जगत तो भला है भगवान ।
हुआ हैं छलनामय गुणगान ॥४०॥ पापों से बचकर न रहेंगे । ईश्वर ईश्वर सदा कहेंगे ।
लड़ लड़कर सब कष्ट सहेंगे ॥ ईश्वर-भक्ति न जान इसे तू है कोरा अभिमान ।
जगत तो भला है भगवान ।
हुआ है छलनामय गुणगान ॥४१॥ पापों से जो रहता न्यारा । उसको ही है ईश्वर प्यारा ।
है मत्कृति में ईश्वर-धारा ॥ ईश अनीशवाद का रहने दे कोरा व्याख्यान ।
जगत तो भूला है भगवान । हुआ है छलनामय गुणगान ॥४२॥
दोहा कोई ईश्वर मानते कोई माने कर्म ।। फल पर यदि विश्वास हो तो दोनों ही धर्म ॥४३॥ सदसत् कमी की नहीं यदि मन में पर्वाह । सारे वाद वृथा गये मिली न सुख की राह ॥४४॥ कर्मवाद भी व्यर्थ है यदि न कर्म का ध्यान । पुण्य पाप का ध्यान हो तो सब बाद महान ॥४५॥