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बारहवाँ अध्याय
[१०३ भक्ति ज्ञान या कर्म से सेवा का न विरोध । जहां न ये तीनों वहां व्यर्थ त्याग की शोध ॥१०९॥ अगर किसी को मुख्यता मिले काल अनुसार । तो न शेप का नाश है यह है धर्म-विचार ॥११०॥ सब धी में कर्म है एक सभी का मार । मत्य न्याय की हो विजय हो सुखशान्ति अपार ॥१११॥
पद्मावती सब धर्म परस्पर निर्विरोध सब में भगवान समाया है । मवने इन नाना रूपों में बम कर्मयोग ही गाया है। मन्नीति रहे जगमें जिससे वह ही सद्धर्म बताया है । त कर अपना कर्तव्य-कर्म जो तेरे मन्मुख आया है ।।११२।।
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मातरम