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(९) ईश्वर मान्यता पर विचार । निरीश्वरवादी जगत् [गीत २८] अकर्मवादी जगत् [गीत २९] वास्तविक ईश्वरवाद और कर्मवाद । परलोकविचार । द्वैताद्वैताविचार । वास्तविक द्वैताद्वैत । किसी भी दर्शन में धर्म के प्राण डालकर विश्व-हित के लिये कर्तव्य कर । न्याय को विजयी बना, अन्याय को पराजित कर । चौदहवाँ अध्याय (विराट् दर्शन) पृ. ११९ ___ अर्जुन--विविध धर्म-ग्रन्थों का निर्णय कैसे करें ? श्रद्धा और तर्क की असफलता । श्रीकृष्ण-श्रद्धा और तर्क दोनों का मेल कर । श्रद्धा के सत्व रजस् तम भेद । तर्क का उपयोग । अर्जुन-तर्क कल्पना रूप है, उसका विचार व्यर्थ है । श्रीकृष्ण-तर्क अनुभवों का निचोड़ है, उसमें कल्पना का मिश्रण न कर । देव, शास्त्र, गुरु सब की परीक्षा कर । अर्जुन-देव, शास्त्र, गुरु बहुत हैं, मैं कैसे पहचान ? श्रीकृष्ण-देव वर्णन, गुणदेव, व्यक्तिदेव (गीत ३०) शास्त्र, विधिशास्त्र, दृष्टांत शास्त्र । गुरु, गुरु की असाम्प्रदायिकता, गुरु-कुगुरु का अंतर । तू विचारक बन और दुनिया को पढ़, (गीत ३१) तुझे भगवान सत्य का विराट्र दर्शन होगा । अर्जुन का विराट दर्शन, सत्येश्वर का विराट रूप, अर्जुन की निर्मोहता और कर्तव्य तत्परता ।
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